बेगूसराय।
कण-कण में लोक कला, लोक संस्कृति, लोक पर्व और लोक उत्सव की सांस्कृतिक विशेषताओं को समेटे मिथिलांचल का घर- आंगन बाग -बगीचा लोग पर्व मधुश्रावणी पर महक उठा है। बुधवार की रात नवविवाहिता ने जब अपने घर में नाग-नागिन (नाग देवता) की मिट्टी से बनी मूर्ति स्थापित कर विषहर, गौरी, गणेश समेत अन्य देवताओं का पूजन किया तो यहां की हर गलियां ”हम तो अपन पिया जी के रूप में देखिला श्रीराम के” से गुंजायमान हो उठा है।
13 दिनों तक चलने वाला यह लोक पर्व इस बार कृष्ण पक्ष में 2 दिन षष्ठी होने के कारण 15 दिनों का हो गया है। नवदंपत्ति का यह मधुमास है। इसका समापन अंतिम पूजा के बाद टेमी दागने के साथ होगा। नाग पंचमी की रात से सुहाग की अमरता के लिए प्रार्थना का विशिष्ट लोक पर्व मधुश्रावणी का अनुष्ठान नवविवाहिता के लिए किसी तपस्या से कम नहीं होती है। इसमें प्रत्येक दिन बांसी फूल और पत्ता से भगवान भोले शंकर, माता पार्वती के अलावा मैना बिसहरी, नाग नागिन की विशेष पूजा होती है। इसके लिए तरह-तरह के पत्ते तोड़े जाते हैं।
नवविवाहिताएं अपने घर की महिलाएं और सखियों के साथ गांव घर में घूम-घूम कर तरह तरह का फूल इकट्ठा करती है। जिसे नाग पंचमी की रात को कोहबर घर में स्थापित नाग देवता के समक्ष डाली में रख दिया जाता है। अगले दिन इसी बांसी स्कूल से पति की लंबी आयु के लिए भगवती गौरी के साथ विषहर की पूजा की जाती है। रात में फिर मैथिली देवी गीत, भोला शंकर-पार्वती के गीत, कोहबर के गीत, विवाह के गीत, राम विवाह गीत एवं अन्य पारंपरिक गीत गूंजते रहते है। इस दौरान शंकर-पार्वती के चरित्र के माध्यम से पति-पत्नी के बीच होने वाली नोक-झोंक, रूठना-मनाना, प्यार-मनुहार जैसे कई चरित्रों के जन्म, अभिशाप और अंत की कथा भी सुनाई जाती है। जिससे कि नवदंपती इन परिस्थितियों में धैर्य रखकर सुखमय जीवन बिताएंं, क्योंकि यह सब दांपत्य जीवन के स्वाभाविक लक्षण हैं। पूजा के अंत में नव विवाहिता सभी सुहागिन को अपने हाथों से खीर का प्रसाद एवं पिसी हुई मेंहदी बांटती हैं। 13 या 15 दिनों तक यह क्रम चलता रहता है फिर अंतिम दिन बृहद पूजा होती है, जिसमें पूजा के क्रम में लड़की को सहनशील बनाने की कामना के साथ दोनों पैर एवं घुटनों को जलती हुई दीये की टेमी (दिये की जलती बत्ती) से दागा जाता है।
मधुश्रावणी व्रत और पूजन का मिथिला तथा खासकर मैथिल समाज में काफी महत्व है। यह व्रत नव विवाहिता अपने अमर सुहाग के लिए करती है। शास्त्रों के अनुसार माता पार्वती ने भी यह व्रत-पूजन किया था। इन दिनों नवविवाहिताएं ससुराल से मिले कपड़े गहने पहनती हैं और भोजन में ससुराल से भेजें अन्न को ग्रहण करती हैं। नव विवाहिता विवाह के पहले साल मायके में ही रहती है, इसलिए पूजा शुरू होने के एक दिन पूर्व नव विवाहिता के ससुराल से सारी सामग्री भेज दी जाती है।इसमें सबसे खास बात यह है कि मिथिला में यह इकलौता पूजन है जिसमें पुरुषों की कोई भूमिका नहीं होती है। सभी काम महिलाएं ही करती हैं।