खुंटी।
नामी-गिरामी हॉकी खिलाड़ी और भारत -पाकिस्तान युद्ध में जांबाज सैनिकों की भूमिका निभाने वाले गोपाल भेंगरा आज गुमनाम जीवन जी रहे हैं। महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर की ओर से हर महीने मिलने वाली आर्थिक मदद और पत्थर तोड़ मजदूरी कर परिवार के भरण पोषण की जुगाड़ में लगे हैं। वे अब हॉकी का नाम भी नहीं लेना चाहते हैं।
गोपाल भेंगरा कहते हैं कि जब तक सितारे बुलंद है, तब तक ही आपकी पूछ है। खेल छोड़ने के बाद कोई पूछने वाला नहीं है। हॉकी ने तो उन्हें पूरी तरह ठुकरा दिया है। पर सुनील गावस्कर ने उन्हें अपनाया। पत्थर तोड़ने की खबर के बाद से ही क्रिकेटर सुनील गावस्कर हर महीने उन्हें 15000 रूपये भेजते हैं।
मालूम हो कि भेंगरा ने वर्ष 1978 में अर्जेंटीना में आयोजित विश्व कप हॉकी प्रतियोगिता में देश का प्रतिनिधित्व किया था। उसी वर्ष पाकिस्तान के साथ टेस्ट में भी भाग लिया था। कई वर्षों तक वे पश्चिम बंगाल की टीम के कप्तान भी रहे। वर्ष 1979 में बैंकाक में हुई दक्षिण एशिया हॉकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम के हिस्सा भी रहे। मोहन बागान की ओर से भी कई बार खेल चुके हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान के साथ वर्ष 1965 और 1971 में हुए युद्ध में भी भाग लिया। पर इनसे सेवानिवृति के बाद किसी ने सुधि नहीं ली। सेना से सेवानिवृति के बाद इतनी कम पेंशन थी कि परिवार का गुजारा मुश्किल हो गया था। ऐसे में उन्होंने पत्थर तोड़ने की मजदूरी करने लगे। इसकी सूचना पर सुनील गावस्कर ने आर्थिक सहायता देना शुरू किया। 75 वर्षीय मेंगरा इन दिनों पुश्तैनी खपरैल मकान में रहते हैं।