Patna: बिहार में तीन दिनों की सियासी उठापटक के बाद आखिरकार नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ एनडीए की सरकार बना ही ली लेकिन इसका सबसे बड़ा लाभ भाजपा को मिलेगा। भाजपा ने जदयू के साथ सरकार बनाकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं। ऐसा कर भाजपा बिहार में सत्ता दल में तो आ ही गयी। साथ ही भाजपा ने इससे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका दिया है।
लोकसभा चुनाव के पहले एनडीए के कुनबे को मजबूत करने और कांग्रेस सहित अन्य विरोधी दलों को जोरदार झटका देने में नीतीश पर चला यह तीर सबसे सटीक निशाना माना जा रहा है। नीतीश कुमार ने 17 महीने अगस्त 2022 में बिहार महागठबंधन सरकार बनाई थी और तब उन्होंने केन्द्र की मोदी सरकार को लेकर एलान किया था कि जो 2014 में आए हैं वे 2024 के लोकसभा चुनाव में फिर से केंद्र की सत्ता में नहीं आएंगे।
नीतीश कुमार ने अपने ऐलान को सफल करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष के नेताओं संग मुलाकात करनी शुरू की और जून 2023 में पटना में विपक्षी दलों की बैठक हुई। बाद में बेंगलुरु और मुंबई में भी करीब 28 विपक्षी दल एकजुट हुए। विपक्ष के इस गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रखा गया। इसके साथ नीतीश कुमार की पहल राष्ट्रीय स्तर पर साकार हुई लेकिन यहीं से नीतीश की पहल कुंद भी पड़ गई। क्योंकि, कई मुद्दों पर लम्बे इंतजार के बाद भी इंडिया में सहमति नहीं बनी। सीट शेयरिंग हो या संयोजक बनाने का मुद्दा, कुछ भी फाइनल नहीं हुआ।
जब नीतीश कुमार को यह आभास होने लगा की कांग्रेस आईएनडीआईए की बागडोर अपने हाथों में लेना चाहती है तो वह भी इससे किनारे होने लगे। जदयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी का कहना है कि विपक्षी दलों के गठबंधन का नाम रखने से पूर्व ही यह तय हो गया था कि बिना प्रधानमंत्री पद के चेहरे के ही विपक्ष लोकसभा चुनाव लड़ेगा लेकिन 19 दिसम्बर की बैठक में ममता बनर्जी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम रख दिया। कांग्रेस सीट शेयरिंग से घबराती रही। उन्होंने कहा कि आईएनडीआईए के पास भाजपा से लड़ने का कोई प्लान ही नहीं था।
इस बीच भाजपा ने बिहार में जदयू के राजद से हो रहे अलगाव का फायदा उठाया और नीतीश को अपने पाले में लाकर भाजपा ने आईएनडीआईए की बुनियाद रखने वाले को ही उखाड़ दिया, जिसने बीजारोपण किया उसी नीतीश कुमार को अपने पाले में लाकर विपक्षी एकता की हवा निकाल दी और बिहार में भाजपा को मजबूत किया, जिसका नतीजा लोकसभा चुनाव के परिणाम में आयेगा।