बेगूसराय। बिहार का आध्यात्म एवं मोक्षधाम तथा मिथिला के दक्षिणी प्रवेश द्वार सिमरिया में पावन गंगा नदी के तट पर लगने वाले एशिया के सबसे बड़े कल्पवास मेला की तैयारी पूरी हो गई है। बेगूसराय जिला के सिमरिया गंगा तट पर नौ अक्टूबर से 17 नवम्बर तक चलने वाले राजकीय कल्पवास मेला का विधिवत उद्घाटन नौ अक्टूबर को किया जाएगा।
दो वर्ष की बंदी के बाद इस साल कल्पवास करने के लिए पिछले पांच दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों से साधु-संतों का आना शुरू है। नौ अक्टूबर शरद पूर्णिमा के दिन से यहां धर्म और अध्यात्म की गंगोत्री प्रवाहित होने लगेगी। इसके लिए खालसा और महंतों का तंबू लगना शुरू हो गया है। वहीं, मिथिला के विभिन्न जिलों से आए कल्पवासियों का पर्णकुटी भी बनने लगा है। कल्पवास के दौरान महात्म्य और कथा के साथ सिद्धाश्रम के संस्थापक स्वामी चिदात्मन जी के नेतृत्व में मेला परिक्षेत्र की पहली परिक्रमा रंभा एकादशी के दिन, दूसरी परिक्रमा अक्षय नवमी के दिन एवं तीसरी अंतिम परिक्रमा बैकुंठ चतुर्दशी के दिन होगा।
इसके साथ ही दो से छह नवम्बर तक ”अमृत उत्सव का महत्व” विषय पर पांच दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जाएगा। जबकि कुंभ सेवा समिति द्वारा 11 अक्टूबर से आठ नवम्बर तक गंगा घाट पर भव्य महाआरती का आयोजन किया जाएगा। सात प्लेटफार्म पर काशी से आए विद्वान आचार्य के नेतृत्व में टोली गंगा मैया की महाआरती करेगी, इसकी तैयारी की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि मिथिला एवं मगध के संगम स्थली गंगा तट सिमरिया में सदियों से कार्तिक मास में कल्पवास करने की परंपरा रही है। यहांं सिर्फ मिथिलांचल ही नहीं, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और नेपाल के हजारों-हजार लोग पर्णकुटी बनाकर कल्पवास करते हैं। इसके साथ ही 50 से अधिक खालसा भी लगाया जाता है। सुबह में गंगा आरती और सूर्य नमस्कार से शुरू होने वाली इनकी दिनचर्या रात्रि में गंगा आरती के साथ समाप्त होती है।
इस दौरान इन लोगों का भोजन भी पूरी तरह से सात्विक होता है तथा अधिकतर लोग गंगाजल में पकाया अरवा-अरवाइन भोजन ही करते हैं। 36 दिन सेेेे अधिक समय तक श्रद्धालु गंगा स्नान के साथ-साथ श्रीमदभागवत कथा, कार्तिक मास महात्म्य, रामायण पाठ और मिथिला महात्म्य आदि का श्रवण कर आध्यात्मिक भक्ति की धारा में लीन रहते हैं। कहा जाता है कि सिमरिया गंगा तट पर आदिकाल से कल्पवास की परंपरा रही है। हिंदू धर्म शास्त्र में उत्तरवाहिनी गंगा का काफी महत्व है तथा सिमरिया में गंगा उत्तरवाहिनी है। राजा परीक्षित को भी श्राप से उद्धार के लिए सिमरिया गंगा तट पर कल्पवास करना पड़ा था।
जनक नंदिनी सीता जब विवाह के बाद अपने ससुराल अयोध्या जा रही थी तो उनके पांव पखारने के लिए राजा जनक ने मिथिला की सीमा सिमरिया में ही डोली रखने को कहा था। तब राजा जनक ने सिमरिया पहुंचकर गंगा के किनारे यज्ञ और कार्तिक मास में कल्पवास किया था, तभी से यहां कल्पवास की परंपरा चल रही है। इस जगह के प्रसिद्धि का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आजादी के बाद देश में गंगा नदी पर सबसे पहला रेल-सह-सड़क पुल यहीं बनाया गया।
स्वामी चिदात्मन जी ने कहते हैं कि देश भर में तीन जगह अनादि काल से ही कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। इसमें हरिद्वार में बैशाख माह में, प्रयागराज में माघ माह तथा आदि कुंभस्थली सिमरिया धाम में कार्तिक माह में कल्पवास के आयोजन की परंपरा है। देश, काल और समय की परिस्थिति का ख्याल रखना हमारी परंपरा रही है, परंपराओं का पालन करते हुए कल्पवास के पौराणिक तथा आध्यात्मिक परंपरा का पालन करना चाहिए।
डीएम रोशन कुशवाहा ने बताया कि कल्पवासियों को किसी भी प्रकार की कोई असुविधा होने नहीं दी जाएगी। साफ-सफाई, प्रकाश के साथ शौचालय की उत्तम व्यवस्था घाट पर करवाई जाएगी। कुटी बनाकर रहने वाले कल्पवासियों, साधु-संतों को कोई परेशानी नहीं होगी। घाट की साफ-सफाई और कुटी बनाकर रहने वाले श्रद्धालुओं के लिए स्थाई रूप से मजदूरों को लगाया जाएगा, सुरक्षा और चिकित्सा की भी व्यवस्था रहेगी।