मुख्यमंत्री ने तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब में मत्था टेका
Patna News: सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के 358वें प्रकाश पर्व बिहार में हर्ष और उल्लास से मनाया गया। प्रकाश पर्व पर पटना साहिब गुरुद्वारा में महालंगर प्रसाद का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने गुरु प्रसाद के रूप में लंगर चखा। लंगर में 24 घंटे महिला एवं पुरुष श्रद्धालुओं को निस्वार्थ भाव से लंगर चखाया। इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सहयोगी मंत्रियों विजय कुमार सिन्हा और विजय चौधरी के साथ तख्त श्री हरिमंदिर पटना साहिब में मत्था टेका।
इस मौके पर गुरुद्वारा में सेवादारों ने निस्वार्थ भाव से सेवाएं दीं। कोई खाना बनाने में लगा था तो कोई श्रद्धालुओं को खिलाने में लगा था। महिलाएं रोटियां बनाने में जुटी थी। कोई सब्जी काटने में लगी थी। सेवादारों की श्रद्धाभक्ति देखते ही बनी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आज सुबह गुरु गोविंद सिंह के प्रकाशोत्सव पर शुभकामना संदेश में कहा कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के 358वें प्रकाश पर्व के पावन अवसर पर मैं सिख समुदाय के सभी भाईयों एवं बहनों के साथ सभी बिहारवासियों के प्रति हार्दिक शुभकामनाएं व्यक्त करता हूं। साथ ही इस अवसर पर बिहार की पवित्र धरती पर पधारे सभी श्रद्धालुओं का स्वागत करता हूं। उन्होंने कहा कि श्री गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन संघर्ष, त्याग एवं बलिदान की अनुपम गाथा है। सत्यनिष्ठा, स्वाभिमान, राष्ट्र-प्रेम तथा सामाजिक समरसता से परिपूर्ण उनका जीवन सम्पूर्ण मानवता के लिए प्रेरणादायी है।
प्रकाशोत्सव में शामिल होने के लिए पंजाब के बटाला से 1505 किलोमीटर की साइकिल यात्रा तय करके सिख श्रद्धालु मनिंदर सिंह पटना साहिब पहुंचे। 22 दिसंबर को मनिंदर ने पंजाब से अपनी यात्रा शुरू की थी। गुरु गोविंद सिंह की जयंती में शामिल होने के लिए वो 6 जनवरी को पटना साहिब पहुंचे हैं। उनकी इस यात्रा का उद्देश्य देश में शांति का संदेश फैलाना है।
सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की 358वीं जयंती आज मनाई गई। उनका जन्म पटना साहिब में पौष शुक्ल सप्तमी को हुआ था। इस वर्ष सप्तमी तिथि 5 जनवरी को रात 8:15 बजे शुरू हुई और 6 जनवरी को शाम 6:23 बजे तक थी। मुगल साम्राज्य के हिंसक और उथल-पुथल भरे समय में जन्मे गुरु गोविंद सिंह को नौ साल की उम्र में दसवें सिख गुरु के रूप में नामित किया गया था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे।गुरु तेग बहादुर को मुगल सम्राट औरंगजेब ने शहीद कर दिया था। क्योंकि, उन्होंने इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया था।
गुरु गोविंद सिंह ने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की, जिसमें आध्यात्मिक समुदाय समाज में समानता और न्याय को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध था। अपने जीवनकाल के दौरान गुरु गोविंद सिंह ने दशम ग्रंथ जैसे कई आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना की, जिसमें उनकी दार्शनिक प्रतिभा झलकती है। अपने लेखन के माध्यम से उन्होंने समानता और निस्वार्थ सेवा के महत्व पर प्रकाश डाला।
उल्लेखनीय है कि हर साल गुरु गोविंद सिंह की जयंती को समान परंपराओं और प्रथाओं वाले कई शहरों में बड़े उत्सव के रूप में मनाया जाता है। गुरुद्वारों में अखंड पाठ होते हैं। सुबह के जुलूस यानी प्रभात फेरी में भक्त भाग लेते हैं और भजन-प्रार्थनाएं गाते हैं। इसके अलावा कीर्तन के साथ प्रार्थना सभाएं भी होती हैं, जिन्हें भक्त अपने घरों में गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाओं के बारे में भजन गाने के लिए आयोजित करते हैं। इसके अलावा ‘लंगर’ (सामुदायिक रसोई) इस दिन सभी लोगों को मुफ़्त भोजन परोसते हैं, जो 10वें सिख गुरु द्वारा प्रचारित समानता और सेवा की भावना को दर्शाता है।