Uttarakhand: उत्तराखंड के उत्तरकाशी के सिल्क्यारा में टनल में फंसे मजूदरों को निकालने का काम शुरु हो गया है। अबतक 9 मजदूरों को सकुशल निकाल लिया गया है। कुछ ही देर में सभी मजूदरों के सकुशल निकलने के उम्मीद है। ज्ञात हो कि टनल में झारखंड के गिरिडीह, खूंटी और पश्चिमी सिंहभूम के 15 श्रमिक सहित कुल 41 श्रमिक उसमें फंसे थे। सिलक्यारा निर्माणाधीन सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए किए जा रहे रेस्क्यू आपरेशन के तहत 17वें दिन मंगलवार को रैट माइनर की मदद से ड्रिलिंग का काम और सायं तक इसमें पाइप पुशिंग का कार्य पूरा किया गया। गौरतलब है कि बीती 12 नवंबर से सिलक्यारा की निर्माणाधीन सुरंग में एक हिस्सा गिरने से विभिन्न राज्यों के 41 श्रमिक उसमें फंस गए थे, जिन्हें निकालने के लिए राज्य और देश की कई एजेंसियां और विदेशी एक्सपर्ट राहत-बचाव कार्य में जुटे हुए थे।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बाहर निकाले गए श्रमिको से मुलाकात कर रहे हैं। इस अवसर पर केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल ( से.नि) वीके सिंह भी मौजूद हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने श्रमिको और रेस्क्यू अभियान में जुटे हुए कर्मियों के मनोबल और साहस की जमकर सराहना की। बाहर निकाले जा रहे श्रमिको के परिजन भी टनल में मौजूद हैं। टनल से बाहर निकाले गए श्रमिकों की प्रारंभिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण टनल में बने अस्थाई मेडीकल कैंप में की जाएगी।
उत्तराखंड के सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को निकालने की मुहिम आखिरकार रंग लाई। तारीखों के आईने में देखते हैं, कब क्या हुआ, जिसने करीब ढाई सप्ताह तक देश की सांसें रोक रखी थीं।
12 नवंबर: उत्तरकाशी में चारधाम परियोजना के तहत निर्माणाधीन सिल्कयारा टनल पर सुबह करीब 5.30 बजे बड़ा हादसा हुआ। भूस्खलन के बाद भारी मात्रा में मलबा गिरने से वहां काम कर रहे 41 मजदूर सुरंग में कैद होकर रह गए।
जिला प्रशासन ने राहत एवं बचाव कार्य शुरू करते हुए सुरंग में फंसे मजदूरों के लिए ऑक्सीजन, बिजली सप्लाई एवं एयर कंप्रेस्ड पाइप के जरिये खाद्य आपूर्ति शुरू कराई। एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, एनएचआईडीसीएल और आईटीबीपी भी राहत एवं बचाव कार्यों से जुड़े।
13 नवंबर: सुरंग में फंसे श्रमिकों से ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाली पाइप के जरिये संपर्क स्थापित किया गया। उधर से मजदूरों के सुरक्षित होने की सूचना दी गई। दोबारा मलबा गिरने के कारण 30 मीटर के क्षेत्र में जमा मलबा 60 मीटर तक फैलने से बचाव अभियान जटिल हो गया। राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने घटनास्थल का दौरा किया।
14 नवंबर: 800-900 मिलीमीटर व्यास वाले स्टील पाइप क्षैतिज (हॉरिजेंटल) खुदाई के लिए मशीन की मदद से मलबे में डालने के लिए सुरंग स्थल पर लाई गई। श्रमिकों के लिए भोजन, पानी, ऑक्सीजन, बिजली व दवाओं की आपूर्ति जारी। इन मजदूरों में से कुछ ने मितली व सिरदर्द की शिकायत की।
15 नवंबर: पहली ड्रिलिंग मशीन से संतोषजनक काम नहीं होने पर एनएचआईडीसीएल ने अत्याधुनिक ऑगर मशीन की मांग की। जिसे दिल्ली से हवाई मार्ग से पहुंचाया गया।
16 नवंबर: ऑस्ट्रेलिया के भू वैज्ञानिक डॉक्टर अर्नाल्ड मौके पर पहुंचे। काउंसिल व्हाइट एंड केस और इंटरनेशनल ट्यूनलिंग ऐंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर अर्नोल्ड डिक्स को अंडरग्राउंड इन्फ्रास्ट्रक्चर, बिल्डिंग्स और ट्रांसपोर्ट रिस्क के शानदार और स्वतंत्र विशेषज्ञ के रूप में जाना जाता है। अर्नोल्ड डिक्स दुनिया भर में कई परियोजनाओं के लिए विवाद निवारण बोर्ड और टेंडर इवैल्युएशन पैनल पर नियुक्तियाँ करते हैं।
ड्रिलिंग मशीन एसेम्बल कर स्थापित किया गया। आधी रात के बाद काम शुरू।
17 नवंबर: रातभर काम चलने के बाद मशीन द्वारा दोपहर तक 57 मीटर लंबे मलबे के जरिये लगभग 24 मीटर ड्रिल किया गया। चार एमएस पाइप डाले गए। पांचवां पाइप डालने के समय बाधा आने पर काम रुका।
बचाव प्रयासों में मदद के लिए इंदौर से एक और अत्याधुनिक मशीन मंगाई गई।
शाम में एनएचआईडीसीएल ने पांचवें पाइप डाले जाने के दौरान रिपोर्ट दी कि बड़ी दरार की आवाज सुनी गई। विशेषज्ञों ने आसपास के क्षेत्र में और भी भूस्खलन की चेतावनी दी, जिसके बाद ऑपरेशन निलंबित कर दिया गया।
18 नवंबर: शनिवार को ड्रिलिंग शुरू नहीं हुई, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना था कि सुरंग के अंदर डीजल चलित 1750 हार्सपावर ऑगर मशीन से उत्पन्न कंपन के कारण अधिक मलबा गिर सकता है। इससे बचाव कर्मियों की जान को खतरा बताया गया।
पूरे मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों और विशेषज्ञों की टीम श्रमिकों को सुरक्षित निकालने के लिए वैकल्पिक तरीकों पर विचार शुरू किया। इसमें सुरंग के शीर्ष के माध्यम से उर्ध्वाकार ड्रिलिंग सहित एक साथ पांच निकासी योजनाओं पर काम करने का निर्णय लिया गया।
19 नवंबर: ड्रिलिंग का काम निलंबित रहा। बचाव अभियान की समीक्षा के लिए पहुंचे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का कहना था कि विशालकाय मशीन के साथ क्षैतिज रूप से बोरिंग बेहतर विकल्प है। उन्होंने ढाई दिन के भीतर इससे सफलता मिलने की उम्मीद जताई।
20 नवंबर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को फोन कर बचाव कार्यों की ताजा स्थिति की जानकारी ली और सुरंग में फंसे मजदूरों का मनोबल बनाए रखने पर जोर दिया।
बचाव दल ने मलबे के बीच 6 मंच चौड़ी पाइपलाइन बिछायी जिससे सुरंग में फंसे मजदूरों तक बड़ी मात्रा में भोजन और आवश्यक सामग्री पहुंचाई जा सकी।
21 नवंबर: टनल में डाले गए 6 इंच के पाइप से एक कैमरा अंदर डाला गया। ऑस्ट्रेलिया के भू वैज्ञानिक डॉक्टर अर्नाल्ड का बहुत बड़ा योगदान रहा। सुरंग के अंदर फंसे मजदूरों का पहला वीडियो जारी किया गया। इस एंडोस्कोपिक कैमरे से श्रमिकों की तस्वीरें सामने आई। इन तस्वीरों के बाहर आने के बाद ऑस्ट्रेलिया के भू वैज्ञानिक डॉक्टर अर्नाल्ड ने बौखनाग देवता के मंदिर में मत्था टेका। साथ ही बचाव अभियान की यह कहते हुए तारीफ की कि सुरंग में फंसे श्रमिकों का मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने की बेहतर कोशिश की गई।
एनएचआईडीसीएल ने रातोंरात सिल्कयारा की तरफ से क्षैतिज बोरिंग की फिर से शुरू की।
प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री से फोन पर बचाव कार्यों की प्रगति की जानकारी ली।
22 नवंबर: बड़ी संख्या में एम्बुलेंस को स्टैंडबाय पर रखा गया। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र में विशेष वार्ड तैयार कर 41 बिस्तरों की व्यवस्था की गई।
इधर, 800 मिमी व्यास वाले स्टील पाइप की क्षैतिज ड्रिलिंग करीब 45 मीटर तक पहुंच गई। करीब 57 मीटर मलबे के विस्तार में से केवल 12 मीटर शेष बचे। मजदूरों को सुरक्षित निकालने की उम्मीदें परवान चढ़ी और शाम तक उनके बाहर निकलने की उम्मीद जताई गई। इस बीच ड्रिलिंग में बाधा आई, जब लोहे की छड़ें मशीन के रास्ते में आ गई।
23 नवंबर: जिस लोहे की बाधा के कारण ड्रिलिंग में छह घंटे की देरी हुई, उसे सुबह हटा कर बचाव कार्य दोबारा शुरू किया गया लेकिन जिस प्लेटफॉर्म पर ड्रिलिंग मशीन टिकी हुई थी, उसमें दरारें देखने के बाद बोरिंग फिर रोकनी पड़ी।
घटनास्थल पर व्यापक स्तर पर एंबुलेंस, चिकित्साकर्मियों, राहतकर्मियों के साथ सुरंग से बाहर निकालने के बाद मजदूरों को जरूरत पड़ने पर एयरलिफ्ट कराने की भी व्यवस्था की गई। इसके लिए करीब में हेलीकॉप्टर उतारा गया।
24 नवंबर: ड्रिलिंग के साथ-साथ बचाव कार्य मुकाम तक पहुंचने की तरफ बढ़ा। शाम तक मजदूरों के सुरंग से बाहर निकालने की उम्मीद जताई गई। जरूरत पड़ने पर एम्स ऋषिकेश में इन मजदूरों को लाने की व्यवस्था की गई।
लेकिन शाम होते-होते श्रमिकों के बाहर आने की उम्मीद मायूसी में बदलती दिखी। सुरंग में ड्रिलिंग का काम एकबार फिर रोक दिया गया। दोबारा ड्रिलिंग शुरू होने के कुछ देर बाद ही ऑगर मशीन का बरमा धातु से टकराने के बाद बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। इस मशीन से आगे काम किया जाना संभव नहीं रह गया। मुहिम को यह झटका तब लगा, जब मशीन सुरंग में फंसे मजदूरों से महज 10 मीटर रह गई थी।
25 नवंबर: दिनभर की उहापोह, सुरंग में फंसे मजदूरों व बाहर उनके परिजनों की भारी निराशा के बीच अंतरराष्ट्रीय सुरंग विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने कहा कि श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए उर्ध्वाकार और मैनुअल ड्रिलिंग सहित कुछ अन्य विकल्पों पर विचार चल रहा है।
क्षतिग्रस्त ऑगर मशीन का क्षतिग्रस्त हिस्सा निकालने में सफलता मिली।
26 नवंबर: बचावकर्मियों ने रविवार को सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग के ऊपर पहाड़ी में मैनुअल ड्रिलिंग शुरू की। सुरंग तक पहुंचने के लिए उन्हें 86 मीटर नीचे ड्रिलिंग करनी थी। शाम तक, भारी ड्रिलिंग उपकरण लगभग 19.5 मीटर तक नीचे तक पहुंच गए।
27 नवंबर: रैट-होल खनन विशेषज्ञ साइट पर पहुंचे। 12 रैट-होल खनिकों की एक टीम ने मलबे के अंतिम 10 से 12 मीटर के हिस्से के लिए मैन्युअल ड्रिलिंग और उत्खनन की प्रक्रिया शुरू की। हालांकि खराब मौसम के कारण काम में बाधा पहुंचने की आशंका जताई गई, जिसे मौके पर मौजूद विशेषज्ञों ने खारिज कर दिया।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर राज्य के मुख्यमंत्री से राहत बचाव कार्यों की जानकारी ली।
28 नवंबर: मैनुअल ड्रिलिंग जारी रही, बचावकर्मियों ने सुरंग के अंदर 52 मीटर तक पाइप डाला, जिसमें 57 मीटर सफलता बिंदु था। मजदूरों के बाहर निकलने की संभावनाएं दिखने लगीं।
दोपहर बाद करीब दो बजे सुंरग में खुदाई का काम पूरा हो गया। उसके बाद एनडीआरएफ की टीम 41 मजदूरों के पास पहुंची। केंद्रीय मंत्री वीके सिंह और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी भी मौके पर पहुंचे और सुरंग के अंदर गए।