देवघर। बसंत पंचमी पर शनिवार को मां सरस्वती की अराधना के साथ बैद्यनाथ धाम देवघर में भोले नाथ के तिलकोत्सव की धूम रही। परंपरा के अनुसार मिथिलांचल क्षेत्र से आए भक्तो ने ज्योतिलिंग पर जलार्पण के बाद तिलक चढ़ाया। इसके बाद होली खेली गई। परंपरा के तहत मिथिलावासी भगवान शंकर को विधि विधान, गीत नृत्य, गाजे बाजे के साथ बाबा संग अबीर गुलाल खेलते हुए उन्हें तिलक चढ़ाते है। यह भगवान शंकर के साथ मिथिलावासियों की नातेदारी का उत्सव है। जिला प्रशासन ने पहले से ही सारी तैयारियां पूरी कर ली थी। आज सुबह मंदिर का पट खुलने के पश्चात बाबा का जलार्पण शुरू होते ही पूरा मंदिर परिसर हर-हर महादेव के जयकारे से गुंजायमान हो गया। शाम तक एक लाख लोगों ने जलार्पण किया।
भगवान शिव को तिलक चढ़ाने मिथिलांचल से करीब 80 हजार तिलकहरू देवघर पहुंचे। शहर के विभिन्न मैदानो और स्कूल ग्राउंड में पिछले करीब हफ्ते भर से डेरा डाले हुए है। पूरा इलाका तिलकहरू से पटा रहा। चारो ओर भजन कीर्तन का दौर चल रहा है। दरअसल मिथिला के लोग बाबा भोलेनाथ को अपना दामाद मानते है। शनिवार सुबह से ही वे तिलकोत्सव में जुट गए। मिथिलावासी सदियो से इस परंपरा का निर्वहन करते आ रहे है।
उल्लेखनीय रहे कि भारतीय परंपरा में बहु-बेटियों और बहनो को प्यार, सम्मान और उपहार देने की परंपरा है। घर में जब भी कोई खुशीहाली या त्योहार का मौका आता है तो घर वाले उन्हें याद करते है। संदेश भेजते है। बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाने के पीछे भी यही कहानी है। तिरहुत यानि मिथिलांचल हिमालय की तराई में बसा है। यहां के लोगो का मानना है कि वे हिम राजा की प्रजा है। ऐसे में मां पार्वती के पिता हिमराज के दामाद भोलेनाथ मिथिलावासियों के भी दामाद है और तिलक चढ़ाने आए तिलकहरू उनके साले। वसंत पंचमी के दिन मंदिर उन्हीं के हवाले रहता है।
आनंद के इस उत्सव के लिए माथे पर पाग (पगड़ी) बांधे औऱ कांधे पर रुनझुन घुंघरुओं वाली बांस की कांवर लिए तिलकहरू बसंत पंचमी के कई दिन पहले से ही देवघर में डेरा डाल देते हैं। इस दौरान पूरा देवघर मिथिलामय नजर आता है। दरभंगा से भोलेनाथ को तिलक चढ़ाने देवघर आए अनंत झा बताते हैं कि भोलेनाथ को तिलक चढ़ाने को लेकर मिथिलांचल में एक महीने पहले से ही तैयारी चलने लगती है। श्रद्धा और पूजा के अलावा बाबा के साथ अबीर की होली खेलने का आनंद ही कुछ अलग है। ऐसा लगता है मानो भोलेनाथ भी जटाएं खोल साथ में गुलाल खेल रहे हों। इस दौरान मिथिलावासी ज्योतिर्लिंग पर अपने खेत में उपजे धान की पहली बाली और घर में तैयार घी, घर में बनाए गए पकवान और लडडू भी अर्पित करते हैं। इसके बाद एक-दूसरे को गुलाल लगाकर तिलकोत्सव की खुशियां बांटते हैं।
बैद्यनाथ धाम पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री दुलर्भ मिश्र कहते हैं कि बाबा को तिलक चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। तिलकोत्सव में मिथिलावासी भोलेनाथ को इतना घी चढ़ाते हैं कि बैद्यनाथ धाम मंदिर परिसर के सभी 22 मंदिरों के दीये सालो भर इसी घी से जलाए जाते हैं। अपनी परंपरा के मुताबिक भोलेनाथ को मिथिलावासी बसंत पंचमी के दिन तिलक चढ़ाकर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को बरात लेकर आने का न्योता देते हैं। यही परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है। मिथिलवासियोंके बसंत पंचमी में देवघर आने की परंपरा प्राचीन है। यह परंपरा बनी रहे और इसे बनाए रखने की जरूरत है।