चतरा।
बिना ट्रांजिट परमिट के सीसीएल द्वारा कोल खदानों से करोड़ो रुपए का कोयला परिवहन करने के मामले में वन विभाग ने आम्रपाली कोल परियोजना पर बड़ी कार्यवाई करते हुए आधा दर्जन कोयला लदे वाहनों को जप्त किया है। जानकारी अनुसार सीसीएल और कोल ट्रांसपोर्टर कम्पनियों की मिलीभगत से वन विभाग को करोड़ो रुपए राजस्व की क्षति हुई है। इस पूरे प्रकरण में सीसीएल के प्रोजेक्ट अधिकारी पीएन यादव, डिस्पैच अधिकारी अविनाश किशोर और कोयले का ढुलाई करने वाली ट्रांसपोर्ट कम्पनीयों की भूमिका संदिग्ध है। बुधवार की देर शाम आम्रपाली से फुलवसिया रेलवे साईडिंग जा रहे कोल वाहनों पर दक्षिणी वन प्रमंडल,टंडवा ने छापामारी की। छापामारी में बिना ट्रांजिट परमिट(टीपी) के कोयला परिवहन कर विभाग को करोड़ो का चुना लगा रही कोल ट्रांसपोर्ट कम्पनी आरकेटीसी के कोयला लदे वाहनों को जप्त किया गया है। कोयला जप्ती की सूचना के बाद सीसीएल प्रबंधन में हड़कंप है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक वन विभाग को लगातार सूचना मिल रही थी कि सीसीएल के डिस्पैच अधिकारी अविनाश किशोर और प्रोजेक्ट अधिकारी पीएन यादव की मिलीभगत से कोल ट्रांसपोर्ट कम्पनियों द्वारा राजस्व की क्षति कर कोयले की अवैध ढुलाई की जा रही है। जानकारी अनुसार 1 अक्टूबर 2020 को वन विभाग ने नियमावली जारी की थी,जिसके मुताबिक वन उत्पाद का परिवहन बिना ट्रांजिट परमिट के नहीं हो सकती। इसके अनुपालन का पत्र राज्य मुख्यालय में स्थित सीसीएल मुख्यालय समेत अन्य विभागों को भी भेज दी गयी थी।
कोल वाहन की जप्ती प्रकरण में एकमात्र ट्रांसपोर्ट कम्पनी आरकेटीसी को ही निशाना बनाया गया
पूरे प्रकरण में जहां एक ओर सीसीएल अधिकारी दोषी हैं,वहीं वन विभाग के रेंजर छोटेलाल साह की भूमिका भी कम संदेहास्पद नहीं है। एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब 1 अक्टूबर को ही वन विभाग की नियमावली आ गयी थी तो किस परिस्थिति में दो माह से आम्रपाली कोल परियोजना से बिना ट्रांजिट परमिट के कोयले का परिवहन जारी रहा और वन विभाग के पदाधिकारी मौन रहे। वहीं कोल वाहन की जप्ती प्रकरण में एकमात्र ट्रांसपोर्ट कम्पनी आरकेटीसी को ही निशाना बनाया गया,जबकि सीसीएल के कोयला ढुलाई में नकास (श्याम ट्रांसपोर्ट) और जय अंबे भी लगी थी। आपको बताते चलें कि एक ओर जहां आरकेटीसी फुलवसिया तक प्रति दिन 10-15 हजार टन कोयले की ढुलाई करती है, वहीं नकास ट्रांसपोर्ट कम्पनी प्रति दिन 45 हजार टन की ढुलाई करती है। अब सवाल उठना यह भी लाजिमी है कि टंडवा रेंजर छोटेलाल साह ने किन परिस्थितियों में आरकेटीसी के अलावे अन्य कम्पनियों के कोल वाहनों पर कार्यवाई नहीं की। इन सबमें एक बात तो खुलकर सामने आ रही है कि रेंजर छोटेलाल की भूमिका निःसंदेह की संदिग्ध है। आश्चर्यजनक तथ्य यह भी रहा कि वन विभाग की ओर से इतनी बड़ी कार्यवाई हो गयी और जिला मुख्यालय स्थित डीएफओ कार्यालय को टंडवा रेंजर ने छापामारी की जानकारी देना भी उचित नहीं समझा।
बिना ट्रांजिट परमिट के हुई करोड़ो रु की अवैध ढुलाई
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक प्रति माह सीसीएल को वन विभाग से कोयला ढुलाई के लिए ट्रांजिट परमिट लेनी आवश्यक है। लेकिन सीसीएल के अधिकारियों ने नवंबर माह का ट्रांजिक्ट परमिट जारी नहीं करवाया। जब मामला फंसा और कोल वाहन जप्त कर लिया गया तो मामले को रफा दफा करने के लिए सीसीएल ने डिस्पैच अधिकारी अविनाश किशोर के माध्यम से तत्काल ट्रांजिक्ट परमिट को जारी करवाने के लिए आनन फानन में दिसंबर माह के राजस्व का पैसा बैंक में जमा करने की कवायद शुरू कर दी ताकि जप्त ट्रकों पर कार्यवाई न हो सके और एक भी ट्रांजिक्ट परमिट जारी हो जाए। लेकिन मीडिया के हस्तक्षेप के बाद उनकी दाल नहीं गली।
वहीं जब सम्बंध में ट्रांजिट प्रभारी सह उत्तरी वन प्रमंडल डीएफओ से बात की गई तो कई चौकानें वाले तथ्य सामने आए। उन्होंने स्वीकारा कि सीसीएल काफी लंबे समय से नियमानुकूल कार्य नहीं कर रहा। उन्होंने बताया कि नियमावली के मुताबिक सीसीएल द्वारा वन विभाग को राजस्व के रूप में प्रति टन 57 रु का भुगतान करना है। लेकिन सीसीएल ने लगातार नियमों की अनदेखी की। उन्होंने बताया कि इनको पूर्व के महीने में ही टीपी के लिए पैसा जमा कर देना चाहिए था। वहीं सीसीएल के डिस्पैच अधिकारी अविनाश किशोर ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि पिछले माह नवंबर का कुछ बकाया रह गया था,इसे जमा करवा दिया गया है। इसके अलावे दिसंबर की बकाया राशी भी जमा करवा दी गयी है। हालांकि उन्होंने जमा राशि की रिसीविंग दिखाने से इंकार कर दिया।