जी टैग मिलने से खाजा की डिमांड और बढ़ गई है।
biharsharif : बिहार की संस्कृति में खाजा पूरी तरह रचा बसा है। खाजा संदेश का एक ठोस स्वरूप है। मिठास से भरपूर इस मिठाई के लोग दिवाने हैं। इसकी मिठास देश के अलावे विदेशों में भी है। खाजा के निर्माण में अब गुड़ का प्रयोग शुरू हुआ है। पहले इसे बनाने के लिए चीनी की मिठास घोली जाती थी। गुड़ की मिठास के साथ तैयार किया जा रहा खाजा लोगों को खूब पंसद आ रहा है।
बिहार स्थित राजगीर नालंदा के बीच एक नगर है सिलाव। सिलाव अपनी एक खास तरह की मिठाई के लिए बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश और यहां तक की दुनिया के कई देशों में प्रसिद्ध है। सिलाव में करीब खाजे की सौ से अधिक दुकानें हैं। यहां का खाजा बेहद खास होता है, जिसे 52 परतों में बनाया जाता है। यहां मीठा और नमकीन दोनों तरह के खाजा बनाए जाते हैं। सिलाव के खाजा को इंटरनेशनल पहचान दिलाने में काली शाह खाजा दुकान के संचालक संजीव कुमार का अहम रोल है।गुड़ निर्मित खाजा की डिमांड बढ़ी।
संजीव कुमार बताते हैं कि गुड़ से निर्मित खाजा की डिमांड पहले से काफी बढ़ गई है। प्रतिदिन 60 से 70 किलो गुड़ निर्मित खाजा बेचा जा रहा है। उन्होंने बताया कि शुगर से पीड़ित लोग चीनी से निर्मित खाजा खाने से बचते हैं। गुड़ निर्मित खाजा चीनी के मुकाबले कम नुकसानदायक हो सकता है। ऐसी ही सोच के साथ उन्होंन खाजा के निर्माण में गुड़ का प्रयोग शुरू किया,जो सफल होता दिख रहा है। यहां चार प्रकार का खाजा बनता है।सिलाव के खाजा को भौगोलिक संकेत दिया गया है। जी टैग मिलने से खाजा की डिमांड और बढ़ गई है।
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