Begusarai: बारिश के बाद तमाम नदियों के जलस्तर में वृद्धि होने लगी है। नदी के जलस्तर में हो रहे वृद्धि से नदियों के गोद में बसे इलाके के लोगों की बेचैनी बढ़ने लगी है। नदियों का जलस्तर खतरा के पार नहीं गया है, लेकिन शासन-प्रशासन और निजी स्तर पर लोग इस आपदा से मुकाबला करने की तैयारी कर रहे हैं। आपदा प्रबंधन के बीच एक बार फिर बिहार से लेकर पड़ोसी देश नेपाल तक में नाव के लिए मशहूर चर्चित मंडी बेगूसराय का गढ़पुरा जरूरतमंद ग्राहकों से गुलजार हो गया है।
50 से भी अधिक कारीगर दिन-रात मेहनत कर नाव बना रहे हैं
50 से भी अधिक कारीगर दिन-रात मेहनत कर नाव बना रहे हैं तथा मौसम को देखकर लग रहा है कि इस वर्ष भी यहां तीन करोड़ से अधिक का कारोबार होगा। कारीगर जहां नाव बनाने में लगे हुए हैं, वहीं अलग-अलग टीम नाव बनाने में उपयोग होने वाले जामुन की लकड़ी ला रहे हैं, आरा मशीन पर उसे नाव के लायक तैयार किया जा रहा है।
कोशी, बागमती, कमला, महानंदा, गंडक आदि नदियों के जलस्तर में वृद्धि होते ही मधुबनी, सहरसा, सुपौल, कटिहार, पूर्णिया, खगड़िया, समस्तीपुर, दरभंगा, भागलपुर के लोग नाव खरीदने के लिए गढ़पुरा पहुंच गए हैं। इसके साथ ही नेपाल से भी बड़ी संख्या में नाव के खरीददार गढ़पुरा पहुंच गए हैं। एक पटिया से लेकर तीन पटिया तक नाव अपने सामने में बैठकर बनवा रहे हैं। कुछ जरूरतमंद नेपाल वासी समय के अभाव में बना बनाया नाव भी खरीद कर ले जा रहे हैं।
हिमालय की तराई से निकलने वाली महाकाली, करनाली, सेती, वाणगंगा, राप्ती, कोशी, गंडक एवं बागमती प्रत्येक साल अभिशाप बनकर आती है
नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र आए खरीददार बताते हैं कि हिमालय की तराई से निकलने वाली महाकाली, करनाली, सेती, वाणगंगा, राप्ती, कोशी, गंडक एवं बागमती प्रत्येक साल अभिशाप बनकर आती है। इसके अलावा चीन की नदियों से आने वाला बेतहाशा पानी भी बर्बादी पहुंचाता है। जिसके कारण तीन से चार महीना नाव पर रहने की मजबूरी होती है।
नाव मिलता तो बहुत जगह है, लेकिन गढ़पुरा में तैयार किया गया नाव हम लोगों की पहली पसंद होती है। यहां नाव ना केवल सस्ता मिलता है, बल्कि मजबूत भी होता है। हम लोग प्रत्येक साल बाढ़ से प्रभावित होते हैं, जिसके कारण करीब सभी घर में नाव रखा जाता है। सरकार व्यवस्था करती है, लेकिन जब प्रत्येक साल इस आपदा को झेलना है तो अपना नाव रहना जरूरी है। जिसके कारण गढ़पुरा का नाव खरीदने आए हैं।
यहां से ट्रैक्टर से नजदीकी करेह (बागमती) नदी तक ले जाने के बाद नदी के रास्ते से नाव अपने गांव ले जाएंगे। नाव खरीदने आए बमभोली यादव ने बताया कि हिमालय के जलग्रहण क्षेत्रों में होने वाली अधिक वर्षा के कारण बाढ़ से प्रभावित होते हैं। नाव बना रहे कारीगर ने बताया कि लंबे समय से बिहार एवं पड़ोसी राज्य ही नहीं, नेपाल तक गढ़पुरा के बने नाव की मांग रहती है।
पानी में सबसे टिकाऊ माने जाने वाले जामुन के लकड़ी की नाव बनती है। एक पटिया से लेकर तीन पटिया तक एवं बड़ी-बड़ी नाव बनाई जा रही है, 25 हजार से दो लाख तक का नाव उपलब्ध है। नाव तो बहुत जगह बनते हैं, लेकिन यहां गुणवत्ता के साथ तुरंत पानी में छोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार करके दिया जाता है।
यहां से नाव खरीद कर कुछ लोग बाढ़ प्रभावित इलाकों में नाव का व्यवसाय करते हैं, वहां नाव का अच्छा पैसा मिल जाता है। कुल मिलाकर कहें तो संभावित बाढ़ के मद्देनजर नाव की मंडी लोगों से गुलजार हो गई है। संभावित आपदा ने अवसर दिया है तथा पूरी मंडी इस अवसर को भुनाने में लगी हुई है। दिन-रात मेहनत कर रोज दस से 15 नाव तैयार किए जा रहे हैं।