शिक्षिका बबिता देवी प्रतिदिन 6 किलोमीटर पैदल चलकर नाव के सहारे स्कूल पहुंचती हैं
Bhagalpur: जिले के नवगछिया अनुमंडल के खरीक में आज भी दो गांव ऐसे हैं, जहां आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी आवाजाही के लिए सड़क की सुविधा नहीं है। ग्रामीण नाव के सहारे ही जीवन गुजारने को विवश हैं। यह हालत है सिहकुंड और लोकमानपुर गांव के लोगों की।
दोनों गांव कोसी नदी के सैलाब का दंश झेलते हैं। गांव चारों तरफ से कोसी नदी से घिरा हुआ है। दोनों गांव एक टापू की तरह नदी के बीचों-बीच बसे हैं। यह गांव जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर और अनुमंडल मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित हैं। सैलाब में यहां आने-जाने वाले लोगों के लिए नाव का सफर ही एकमात्र विकल्प है। इन दोनों गांवों में हॉस्पिटल भी नहीं है। यदि कभी कोई इमरजेंसी आ जाए या किसी की तबीयत ज्यादा खराब हो जाए तो भगवान ही मालिक है।
आवागमन का साधन नहीं होने के कारण गांव के बच्चे चाहकर भी उच्च शिक्षा से वंचित हैं। यहां पर एक मात्र प्राथमिक स्कूल है। यहां पढ़ाने के लिए शिक्षिका बबिता देवी प्रतिदिन 6 किलोमीटर पैदल चलकर नाव के सहारे स्कूल पहुंचती हैं। बबिता देवी बताती हैं कि वह पिछले 13 वर्षो सिहकुंड गांव में स्थित प्राथमिक विद्यालय आजाद नगर में प्रतिनियुक्ति हैं और लगातार नाव से ही बच्चों को पढ़ाने स्कूल जाती हैं। पिछले 13 वर्षो से यहां कोई बदलाव नहीं हुआ है।
उन्होंने कहा कि इन दो गांवों में जाने के लिए राज्य पुल निर्माण निगम लोकमानपुर गांव से विजय घाट तक 44.47 करोड़ की लागत से 456 मीटर लंबा और 8.4 मीटर चौड़ा पुल बन रहा है, जो पिछले 5 वर्षों से अधर में लटका है। यदि इस पुल का निर्माण हो जाता है तो यहां बसे 25 हजार की आबादी वाले दो गांवों का सीधा संपर्क जिला मुख्यालय और अनुमंडल मुख्यालय हो जायेगा।
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