. राजनीतिक दल के नेताओ का तीर्थस्थल बन गया पारसनाथ
रांची। कल तक जो पारसनाथ सम्मेद शिखर शान्ति अहिंसा का केन्द्र बना हुआ था आज अपने हक और अधिकार प्राप्ति की लड़ाई के लिए प्रारम्भ आन्दोलन के लिए पहचान बनाने को आतुर है। अब यह आन्दोलन हिंसक रूप में बदलता नजर आ रहा है। आदिवासी समुदाय के नेताओ ने मंगलवार को जो आन्दोलन पारसनाथ में शूरू किया गया है उसे अब राजनीतिक मोड़ दिया जा रहा है। आगामी 24 जनवरी को सम्पूर्ण झारखंड बन्द की धोषणा कर दी गई है ।अब कुछ लोगो ने राजनीतिक स्वार्थ के लिए आन्दोलन की दिशा को हिंसक मोड़ देना शुरू कर दिया है।
केन्द्र और राज्य सरकार के हाल में पारसनाथ को पर्यटन स्थल से बदल कर तीर्थस्थल किये जाने की धोषणा के बाद यह चिंगारी ने विकराल रूप लिया है। आदिवासी समुदाय का कहना है की पारसनाथ आदिवासी का धर्मस्थल केन्द्र मारंग बुरू के रूप में प्राचीन काल से स्थापित है । यह उनकी पहचान है ,उन्हे मिटने नही देगे। यदि यह देखा जाए तो सरकार की धोषणा के बाद ही यह तांडव शुरू हुआ है। उनका कहना है की जैन समुदाय के लोग बाद मे वहां आकर अपना स्थान बनाया । मारंग बुरु में पहले भी और आज भी आदिवासी अपना धार्मिक पुजा पाठ किया करते रहे । यह आज भी सुचारू रूप से चल रहा है।
पारसनाथ के चारो ओर हजारो आदिवासी रहते हैं।पारसनाथ की पहाड़ी और जंगल उनकी जीविका का सहारा है। सम्मेद शिखर तीर्थस्थल से वो अपना रोजगार चला रहे है। हजारो की संख्या मे वहां व्यवसायिक प्रतिष्ठान सम्मेद शिखर के कारण चल रहे है। इसके पहले आज तक इस तरह की वैमनस्य की स्थिति नही बनी। एकाएक ऐसा क्यु बना । लोगो का कहना है की कुछ दिन पहले सम्मेद शिखर जाने वाले रास्ते में उसी क्षेत्र की रहने वाली एक बालिका को शिखर के कुछ लोगो रोका था ।उस रास्ता के उपयोग पर रोक लगाने जाने के बाद मामला भड़क गया । राजनीतिक दल के कुछ नेताओ ने इसे मुद्दा बना कर आन्दोलन को हवा दे दी । आज स्थिति यह बन गई है की हजारो दुकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान बन्द हो गये है।स्थानीय लोगो ने उनसे खरीदारी पर रोक लगा दी है।आज स्थानीय लोगो के रोजी रोटी पर आफत ला दी है।हलांकि जैन समुदाय ने इस विरोध आन्दोलन पर अब तक एक भी बयान जारी नही किया है।
आदिवासी नेता सालखन मुर्म ने कहा है की यह आदिवासी संस्कृति और धार्मिक आस्था का बिषय है।मारंग बुरु आदिवासी समुदाय है और रहेगा।अयोध्या के राम मंदिर की तरह उसे आजाद कराया जायेगा । राज्य के घर घर तक इस आन्दोलन को ले जायेगे।
आदिवासी नेता झामु मो के विधायक मारंग बुरु को आजाद कराने के लिए किसी भी है तक जाने की बात कह रहे है।
यहां यह सवाल उठ रहा है की पारस नाथ कल भी धार्मिक स्थल था और आज भी है। जैन तीर्थस्थल और मारंग बुरु पर धार्मिक आस्था सबकी बनी है ।दोनो समुदाय अपना धार्मिक कार्यक्रम करते रहे है फिर लड़ाई किस बात की हो रही । क्यु लोग एक दुसरे को चैलेंज दे रहे है । क्या इस आन्दोलन को किसी खास कारण या लाभ के लिए शुरू किया गया है। सवाल यह भी उठ रहा है की मारंग बुरु क्षेत्र मे रहने वाले का क्या होगा । रोजी रोटी छिन्न जाने वाले कैसे परिवार चला पायेगे। कुछ आदिवासी नेता ने कहा है की ब्रिटिश काल से ही यह निर्णय आया था की पारसनाथ की पहाड़ी मारंग बुरु धार्मिक स्थल के रूप में धारित है।
सवाल यह उठ रहा है की मारंग बुरु को किसी विदेशी एजेन्सी की नजर त नही लग गई। झारखंड मे कई बार यह बात सामने आ चुकी है की यहां की शान्ति व्यवस्था को इसी तरह भंग करने का प्रयास किया जाता रहा है ।