भागलपुर। प्रतिभा के स्वामी नाथनगर के दिव्यांग अनिल कुमार ने बिना पेंटिंग ब्रश के 450 मीटर की खुबसूरत पेंटिंग बनायी है, जिसमें एक साल का वक्त लगा है। पर सरकार अथवा अन्य संस्थाओं से किसी भी तरह की मदद नहीं मिलने से वे हतोत्साहित होने लगे है। मेहनत से बनायी गई कला को सम्मान नहीं मिलने का उसे मलाल हो रहा है। दिव्यांग कलाकार ने लोकगाथा बिहुला-बिषहरी पर आधारित मंजूषा पेंटिंग, श्रावणी मेला पर आधारित पैदल बाबा धाम यात्रा, भागलपुर के प्रसिद्ध बुढ़ानाथ मंदिर, अजगैबीनाथ मंदिर, महर्षि मेही आश्रम, कुप्पा घाट, घंटा नगर सहित नाथ नगर की मशहूर सिल्क कारोबार को दर्शाते हुए 450 मीटर की पेंटिंग बनाकर लोगो का ध्यान आकर्षित किया है।
चित्रकार अनिल को उम्मीद थी कि पेंटिंग को काफी सराहा जाएगा, काफी लोग उन्हें जानेंगे और सम्मान भी मिलेगा। कुछ सम्मान मिला भी लेकिन बिहार से बाहर। पेंटिंग में बिहार का परिवेश, सामाजिक ढांचा आदि एक के बाद एक आकार लेता जाता है। सुल्तानगंज से देवघर तक की 105 किलोमीटर लंबी कांवड़ यात्रा, मंदार पर्वत का इतिहास, भागलपुर की तसर रेशम बुनाई कला, बटेश्वर स्थान, विक्रमशिला विश्वविद्यालय खंडहर, भागलपुर विक्रमशिला पुल, गंगा नदी सभी कुछ इस मैराथन चित्रकारी में झलक आता है। दिव्यांग चित्रकार अनिल कुछ साल पहले तक एक निजी विद्यालय में कला शिक्षक के रूप में कार्यरत थे।
अनिल कुमार की पेंटिंग 2018 में अंतर्राष्ट्रीय कला मेला दिल्ली में प्रदर्शनी में लगाई गई थी। मेले में 400 मीटर पेंटिंग को काफी लोगों ने सराहा था। पेंटिंग में अंग प्रदेश को विस्तृत रूप से कलात्मक तरीके से दिखाया गया है। अंग की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की नई रंगत को निखार आ गया है, जिस कारण उन्हें पुरस्कृत भी किया गया। चित्रकार अनिल ने बताया कि चित्रकारी का शौक उन्हें बचपन से ही था। जब वे स्कूल जाते थे तो पढ़ने में मन नहीं लगता था। स्कूल से आने के बाद पेंटिंग बनाता था। उन्होंने कहा कि जब बड़े हुए तो फादर वर्गिस के संपर्क में आये।
फादर वर्गिस ने उन्हें पढ़ाया लिखाया और शांतिनिकेतन कोलकाता में दाखिला दिलवाया। 5 साल पढ़ाई की और इस दौरान चार बार स्कॉलरशिप भी मिली। सालों से चित्रकारी कर रहे हैं लेकिन सम्मान नहीं मिल रहा है। पत्नी पूनम देवी ने बताया कि बाबा बैद्यनाथ की कांवड़ यात्रा का वर्णन उन्होंने ही किया है। पति कभी देवघर नहीं गए हैं। वो बचपन में एक बार बाबा धाम के लिए पैदल गईं थी, उसी याद को उन्होंने अपने पति को बताया जिसे उन्होंने चित्रण किया है। मेहनत को उनकी कला को सम्मान नहीं मिलने का मलाल है।