बेगूसराय।
पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने वाला पितृपक्ष सोमवार 20 सितंबर को अगस्त मुनि को जल देने के साथ शुरू होगा। इसके बाद 21 सितंबर से लोग अपने पितरों- पूर्वजों को याद करते हुए तर्पण करेंगे।
पितृपक्ष 6 अक्टूबर तक चलेगा। शास्त्रों के मुताबिक जिनका निधन हो चुका है वे पितृपक्ष के दौरान पूर्वज अपने सूक्ष्म रूप में धरती पर आते हैं तथा परिजनों के तर्पण का स्वीकार कर आशीर्वाद देते हैं। इस दौरान किए गए दान-धर्म के कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।
पंडित आशुतोष झा ने बताया कि पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि से आश्विन की अमावस्या तक पितृपक्ष होता है। पितृ पक्ष में स्मरण करने से पितर घर आते हैं और भोजन पाकर तृप्त हो जाते हैं। पितरों की आत्मा तृप्ति से व्यक्ति पर पितृ दोष नहीं लगता है। परिवार की उन्नति होती है और पितरों के आशीर्वाद से वंश वृद्धि होती है।
उन्होंने बताया कि तर्पण के बाद पूर्वजों के निमित्त पिंड दान करना चाहिए और पिंडदान के बाद गाय, ब्राह्मण ,कौआ, चींटी या कुत्ता को भोजन कराना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान पूर्वज किसी न किसी रूप में दरवाजे पर आते हैं। पितृ पक्ष में यमराज भी पितरों को परिजनों से मिलने के लिए मुक्त करते हैं।
पंडित झा ने बताया कि श्रद्धा पूर्वक किए गए कार्य को श्राद्ध कहते हैं। सत्य कार्यों, सत्य पुरुषों , सद्भाव के लिए कृतज्ञता की भावना रखना श्रद्धा कहलाता है। उन्होंने बताया कि माता पिता और गुरु के प्रयत्न से बालक का विकास होता है। उस उपकार के बदले बच्चों को इन तीनों के प्रति अटूट श्रद्धा मन में धारण करने की सीख शास्त्रों में दी गई है।