रांची। एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा औधोगिक प्रतिष्ठान एचईसी लगभग बन्दी के कगार पर है।केन्द्र सरकार की उपेक्षा, उदासीन नीति और आर्थिक सहयोग नही करने के कारण कम्पनी लगभग बंद हो चुकी है। निगम मे कार्यादेश की कमी है ।जो कार्यादेश कम्पनी के पास पहले से थे वह वापस जा चुके है ।निगम के पास कच्चा माल खरीदने के लिए पैसा नही है। निगम मे मैन पावर के नाम पर तीन हजार की संख्या मे कर्मी और अधिकारी बचे है।
निगम ने पिछले बारह माह से उन्हे वेतन भुगतान भी नही किया है।निगम के द्वारा केन्द्र से लगातार मदद की गुहार लगाई जा रही है।वेतन भुगतान नही होने से श्रमिक का असंतोष कभी विस्फोटक रूप ले सकता है।पिछले दिनो श्रमिक ने निगम मुख्यालय के सामने विरोध स्वरूप पकौडा तल कर विरोध जताया था।निगम के जानकार लोगो का कहना है की सरकार ने कम्पनी को लगभग मृत प्रायः मान चुकी है इसलिए निगम पर धन नही लगाना चाहती ।
एचईसी की भूमि,भवन और अन्य संसाधन पर लगभग झारखंड सरकार ने अप्रत्यक्ष रूप से कब्जा जमा लिया है ।निगम की खाली जमीन पर झारखंड सरकार ने विधान सभा भवन,सचिवालय,उच्च न्यायालय के साथ साथ अन्य भवन बिना अनुमति के बनाया है।अलग राज्य झारखंड की स्थापना के बाद सरकार ने एच ई सी के भवन समेत अन्य संसाधन पर किराया निर्धारित कर लिया था ।सूत्र का कहना है की झारखंड सरकार ने निगम को आज तक एक पैसा भी भुगतान नही किया है।
एचईसी के आवास पर सरकार ने कब्जा कर अपने अधिकारी और कर्मचारी को आवंटित कर दिया है ।निगम में स्थायी बन्दी की धोषणा कभी भी सम्भव बनती जा रही है। निगम के अवकाश ग्रहण करने वाले भी अपने लंबित राशि पाने के लिए लगातार चक्कर लगाते देखा जा सकता है।आर्थिक संकट का यह हाल है की निगम का बड़ा अस्पताल भी निजी क्षेत्र के हाथो जा चुकी है ।निगम की खाली भूमि और आवास पर लगभग अस्सी प्रतिशत कब्जा लोगो ने कर लिया है।