गढ़वा। गढवा जिला के रमकंडा और आस पास के क्षेत्र में कोहराम मचाने बाला आदमखोर तेंदुए को जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए सरकार के आदेश के बाद वन विभाग की टीम मैदान में उतर चुकी है ।अब तक आदमखोर तेंदुए ने चार बच्चों सहित आधा दर्जन से अधिक पालतू मवेशी को अपना निवाला बना चुका है। कुछ समय पहले दो वन रक्षक को भी मारने की कोशिश की थी ।गढवा में आदमखोर तेंदुए के भय से लोग घर से बाहर नही निकल रहे है। ग्रामीण समुह में ही आवश्यक काम के लिए जा रहे है।लोगो ने घर के बाहर पालतू मवेशी भी बांधना बन्द कर दिया है। खेत पथार पर काम बन्द है। वन विभाग की टीम तेंदुए के सम्भावित क्षेत्र में कैमरा और पिंजरे को लगा दिया है ।दिन रात निगरानी की जा रही है । लोगो का कहना है की तेंदुए ने अपना क्षेत्र बदल दिया है ।
चार पांच दिन से लोगो ने उसकी छाया तक नही देखी है। यदि यह सही हुआ तो लोगो के लिए और धातक हो सकता है । नये जगह में वो और सक्रिय होकर लोगो पर हमला कर सकता है । लोगो का कहना है की तेंदुए एक सप्ताह तक बिना भोजन पानी के काट सकता है ।जगह में हलचल के कारण तेंदुए किसी पठारी अथवा धने जग॔ल में छुपा लिया है।हलांकि वन विभाग के द्वारा लगातार सर्च अभियान चलाकर खोज जारी है।विभाग ने बडे पैमाने पर अभियान चलाकर उसे जिन्दा या मुर्दा पकड़ने की कोशिश कर रही है।
मालूम हो की कुछ दिन पहले देर शाम रमकंडा निवासी बारह बर्ष के हरेन्द्र घाटी को अपना शिकार बनाया। बच्चे को मारने के बाद तेंदुए ने कुसवार निवासी मनसूर मंसुरी के गौशाला पर घावा बोलकर एक मवेशी को मार डाला फिर एक बैल को भी अपना शिकार बना डाला। आदमखोर तेंदुए के लगातार हमले के बाद क्षेत्र के लोग गुस्से मे नजर आ रहे हैं।
लोगो का आरोप है की विभाग मात्र तेंदुए को पकड़े का नाटक कर रही है। झारखंड सरकार के वन विभाग में शीर्ष अधिकारी की बैठक में आदमखोर तेंदुए को जिन्दा या मुर्दा पकडने के लिए विचार-विमर्श किया गया तब टीम को प्रभावित क्षेत्र में भेजा गया है । आदमखोर तेंदुए ने मानव शरीर का खून के स्वाद को चख लिया है जिससे वह और भी खतरनाक बन गया है। कुछ लोगों का कहना है की उस क्षेत्र में एक नही तीन तेंदुए देखे गये है । झारखंड के पड़ोसी राज्य से ही तेंदुए ने गढवा में प्रवेश किया है। कुछ समय से यह देखा जा रहा है की झारखंड के जंगल से जंगली जानवर पलायन कर शहर की ओर बढना शुरू कर दिया है। पुरे राज्य में जंगली हाथी ग्रामीण सहित शहरी क्षेत्र में आतंक मचा रखा है। न लोगो के खेत सुरक्षित है और जान माल की रक्षा हो पा रही है। वन विभाग भी अपने कर्तव्य को भूल चुकी है । हर घटना के बाद मुआवजे राशि का वितरण कर काम समाप्त मान लिया जाता है।जंगली हाथियों के आक्रमण से मरने वालो का ग्राफ चौगुना हो चुका है।