रांची। राज्य स्थापना दिवस समारो में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और राज्यपाल रमेश बैस का शामिल नही होना राजनितिक गलियारों में चर्चा का विषय बना है। उल्लेखनीय हो कि राजकीय समारोह में शामिल होने के कुछ समय पहले ही राष्ट्रपति मुर्मू का कार्यक्रम रद्द हो गया ।हलांकि सरकार की ओर से उन्हे विधिवत निमंत्रण दिया गया था । सरकार ने उनके दो दिवसीय कार्यक्रम को लेकर युद्ध स्तर पर तैयारी पुरी कर ली थी । राष्ट्रपति की बिशेष सुरक्षा दस्ता ने रांची और खूंटी जाकर सुरक्षा प्रबंधन का भी निरीक्षण किया था । सब कुछ व्यवस्थित तैयारी चल रही थी । झारखंड के लोग इस बात को लेकर प्रसन्न थे की राज्य स्थापना दिवस पर पहली बार राष्ट्रपति लोगो को सम्बोधित करेंगे। खूंटी के लोग तो और खुश थे की राष्ट्रपति आ रही है। परन्तु कार्यक्रम से मात्र 30 घंटा पहले राष्ट्रपति भवन से सरकार को यह सुचना मिली की राष्ट्रपति के कार्यक्रम मे तब्दीली की गयी है । राष्ट्रपति का कार्यक्रम अब मात्र दो तीन घंटे का होगा ।
देवघर, स्थापना दिवस और खूंटी की सभा को रद्द कर राष्ट्रपति ने केवल उलिहातु में भगवान बिरसा मुंडा के पैतृक आवास पर उन्हे श्रद्धांजलि लौट गई ।राष्ट्रपति 15 नवंबर को प्रातः 8: 30पर रांची हवाई अड्डा पर बिशेष विमान से पहुंची और हेलीकाप्टर से सीधे उलिहातु गई। वापसी भी उसी तरह हुआ । हवाई अड्डा से सीधे मध्य प्रदेश के लिए प्रस्थान कर गई।
स्थापना दिवस समारोह मे अक्सर राज्य के सत्ता पक्ष के साथ साथ विपक्ष को भी आमंत्रित किया जाता है । इस बार निर्धारित कार्य क्रम में कुछ घंटे पहले राजपाल ने आने से इंकार कर दिया। समारोह मे राज्यपाल मुख्य अतिथि के रूप मे आमंत्रित थे । राज्यपाल का स्थापना दिवस कार्यक्रम मे नही आना भी चर्चा में है। बताया जाता है कि स्थापना दिवस समारोह मे जो विज्ञापन सरकार की ओर से विभिन्न अखबार को जारी किये गये उनमे राज्यपाल की फोटो और संदेश शामिल नही किया गया। जिसे उन्होने गंभीरता से लिया और समारोह से अपने को अलग कर ली । इस विपक्ष ने मुद्दा बनाकर सरकार पर हमला बोल दिया है।
भाजपा के सांसद संजय सेठ ने कहा है की सरकार की यह मानसिकता गलत है। उन्होने झारखंड राज्य स्थापना दिवस के विज्ञापन में राज्य सरकार के द्वारा राज्यपाल रमेश बैस की तस्वीर नहीं छापने पर कड़ा एतराज जताया है। सांसद सेठ ने कहा कि झारखण्ड स्थापना दिवस पर अखबारों के विज्ञापन में राज्यपाल की तस्वीर नहीं है जबकि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। बेहद दूर्भाग्यपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण निर्णय है। ऐसा क्यों हुआ ? जवाब तो राज्य सरकार को देना चाहिए।