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    Home»Headline»Koderma: झारखंड की अभ्रक खदानों से मिटा बाल मजदूरी का कलंक,  पिछले 20 वर्षों में अब तक 20,000 से ज्यादा बच्चों को बाल मजदूरी से छुटकारा दिला कर स्कूलों में दाखिला कराया गया  
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    Koderma: झारखंड की अभ्रक खदानों से मिटा बाल मजदूरी का कलंक,  पिछले 20 वर्षों में अब तक 20,000 से ज्यादा बच्चों को बाल मजदूरी से छुटकारा दिला कर स्कूलों में दाखिला कराया गया  

    टुडे पोस्ट लाइवBy टुडे पोस्ट लाइवJuly 5, 2024No Comments5 Mins Read
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     राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने झारखंड की अभ्रक खदानों को ‘बाल श्रम मुक्त’ घोषित किया

    Koderma:   राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने एलान किया कि झारखंड की अभ्रक खदानें अब ‘बाल श्रम मुक्त’ हो चुकी हैं।  इस ऐतिहासिक उपलब्धि के साथ ही राज्य की अभ्रक खदानों को बाल मजदूरी से मुक्त कराने की 20 साल की समर्पित यात्रा अब अपने मुकाम पर पहुंचने वाली है । क्योंकि  सभी बाल मजदूरों को अभ्रक खदानों से न सिर्फ मुक्ति दिलाई गई है बल्कि इन सभी का स्कूलों में दाखिला भी कराया गया है। शुक्रवार को डोमचांच में आयोजित कार्यक्रम में   एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने राज्य, जिले, स्थानीय सरकारी निकायों, ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ कार्यक्रम, बच्चों और समुदाय के साझा प्रयासों से अभ्रक खदान आपूर्ति श्रृंखला से बाल मजदूरी के खात्मे की बात कही।

    एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ की घोषणा करते हुए कहा, “आज मैं एलान करता हूं कि सभी बच्चे अभ्रक खदानों में शोषण से मुक्त हो चुके हैं। मुझे यह बताते हुए हर्ष और गर्व हो रहा है कि अब ये बच्चे खदानों में नहीं, बल्कि स्कूल जा रहे हैं। बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान, ग्राम पंचायतों, राज्य सरकार और जिला प्रशासन के साझा प्रयासों और इच्छाशक्ति से इन गांवों में जो उपलब्धियां हासिल की गई हैं, वह इस बात का सबूत है कि किस तरह लक्ष्य के प्रति समर्पण और सतत प्रयासों से बच्चों के लिए न्याय और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है। यह अभ्रक खदानों से बाल मजदूरी के अंत की शुरुआत है और हमें सफलता को बनाए रखना है।”

    वहीं बाल मजदूरों की शिनाख्त के लिए 2004 में इस अध्ययन की शुरुआत करने वाले प्रख्यात बाल अधिकार कार्यकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता भुवन ऋभु ने अभ्रक खदानों को बाल श्रम मुक्त बनाने की इस लंबी और कठिन यात्रा को याद करते हुए कहा, “अभ्रक चुनने और खदानों में काम करने वाले 22,000 बच्चों की पहचान करना और उनका सफलतापूर्वक विद्यालयों में दाखिला कराना बाल श्रम मुक्त अभ्रक के लक्ष्य को हासिल करने में जुटी सरकार और नागरिक संगठनों के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। यह एक ऐसा उदाहरण है जिसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में बाल मजदूरी के पूरी तरह खात्मे के लिए असंगठित क्षेत्र में पूरी दुनिया में सभी जगह अपनाया जा सकता है।” उन्होंने आगे कहा कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी के निर्वाचन क्षेत्र में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है जिन्होंने पिछले कई वर्षों से इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सक्रिय भूमिका निभाई है।

    2004 में जब इस कार्यक्रम की शुरुआत हुई तब यह इलाका नक्सली हिंसा से जूझ रहा था जिससे सरकारी विभागों और एजेंसियों के सामने भी चुनौती थी। इसके बावजूद बाल श्रम मुक्त अभ्रक अभियान के रणनीतिक, सतत और सम्मिलित प्रयासों से अभ्रक खनन पर निर्भर सभी 684 गांवों को बाल मजदूरी से मुक्त कराया जा चुका है। इन गांवों के  20,854 बच्चों को जहां अभ्रक चुनने के काम से बाहर निकाला जा चुका है, वहीं 30,364 बच्चों का स्कूलों में दाखिला कराया गया है। नियमित रूप से निगरानी के माध्यम से यह कार्यक्रम प्रतिदिन 137,997 बच्चों की सुरक्षा करता है। इसके अलावा सबके सम्मिलित प्रयासों से अभ्रक क्षेत्र के 275,516 लोगों को सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलाया गया।

    कार्यक्रम में मौजूद एस्टे लॉडेर कंपनीज के कार्यकारी निदेशक डेविड हिरकॉक ने कहा, “समाधान केंद्रित और बच्चों पर केंद्रित रवैये से यह सफलता मिली है। पूरी दुनिया से बाल मजदूरी खत्म करने के लिए जरूरी है कि बच्चों की आवाज सुनी जाए, उनके अनुभव से सीखा जाए, समाधान खोजने में उनकी स्वैच्छिक सहभागिता तलाशी जाए और उस पर कार्रवाई की जाए। बाल श्रम मुक्त अभ्रक कार्यक्रम ने पिछले 20 वर्षों के दौरान बाल श्रम के खात्मे तथा सुरक्षित समुदायों के निर्माण के लिए बच्चों और समुदायों को उनके अंतर्निहित अधिकारों व उपलब्ध अवसरों के बारे में मार्गदर्शन किया। यह एक मजबूत निर्णय प्रक्रिया की ओर ले गया जहां बच्चों, सरकारी अमले और समुदायों ने साझा हित में परस्पर सम्मान के साथ काम किया।” एस्टे लॉडेर शुरुआत से ही ‘बाल श्रम मुक्त अभ्रक’ कार्यक्रम की सबसे प्रमुख सहयोगी रही है।

    अपने जीवन के संघर्षों और सफलताओं की चर्चा करते हुए झारखंड के नउवाडीह गांव की बिंदिया कुमारी ने अभ्रक खदानों में बाल मजदूरी से लेकर अपने गांव की बाल पंचायत में सचिव बनने तक की यात्रा साझा की। उसने कहा, “अभ्रक खदानों में काम करने के दौरान हमारी उंगलियों से लगातार खून बहता था और हमेशा दर्द रहता था। लगता था कि हमारा जीवन हमेशा ऐसा ही रहेगा। अपने गांव में बाल मित्र कार्यक्रम की शुरुआत के बाद मैं अपनी सहेलियों के साथ एक बार फिर स्कूल जा सकी। अब मैं दसवीं कक्षा में हूं और बड़ी होने के बाद मैं एक ऐसी सरकारी अफसर बनना चाहती हूं जो बच्चों के शोषण को रोक सके।” उसने बताया कि बाल पंचायत की सचिव के तौर पर उसने अन्य पंचायत सदस्यों के साथ मिलकर अपने गांव के 45 बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया है।

     विधायक नीरा यादव ने कहा कि कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन के कार्यकर्ताओं और जिला प्रशासन के सहयोग से पूरे क्षेत्र में अभ्रक क्षेत्र से बच्चों को बाल श्रम मुक्त करवाने में काफी अहम भूमिका निभाई है।जिसके लिए बधाई के पात्र है। कार्यक्रम को गिरिडीह के डीसी नमन लकड़ा ने भी संबाेधित किया।  मौके पर कोडरमा के डीडीसी ऋतुराज सहित पूर्व बाल मजदूर, बाल पंचायतों के बाल नेता और सदस्य, सामुदायिक सदस्य, पंचायती राज संस्थाओं के सदस्य और शिक्षा, महिला एवं बाल विकास और श्रम विभाग के प्रतिनिधि भी मौजूद थे।

    औरजानकारीकेलिएसंपर्ककरें

    जितेंद्रपरमार

    8595950825

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    ‘Child labour free’ Mica mines National Commission for Protection of Child Rights
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