रांची। झारखंड मे सैंया भये कोतवाल त अब डर काहे का कहावत चरितार्थ किया जा रहा है। सरकार के साथ ही अब राज्य के अधिकारी कर्मचारी भी ई डी को नियम ,परिनियम और अधिनियम का पाठ पढाना आरम्भ कर दिया है। झारखंड सरकार ने राज्य पुलिस द्वारा किए गए एक मामले की जांच की समीक्षा या निगरानी करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट दायर किया है। बरहरवा टोल प्लाजा मामले में सोमवार को ईडी से नदारद रहे झारखंड पुलिस के डीएसपी प्रमोद कुमार मिश्रा ने यह दावा किया। उन्होंने कहा कि इसी वजह से वह ईडी के समक्ष पेश नहीं हो सके।
राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक एसएलपी दायर की है । डीएसपी पीके मिश्रा ने कहा है कि मुझे ईडी से एक नोटिस मिला और मुझे सोमवार की सुबह 11 बजे आने के लिए कहा गया। मैं जाने के लिए तैयार था, मगर जब मुझे सूचना मिली कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक एसएलपी दायर की है, इस वजह से मैं ईडी के समक्ष नहीं पेश हो सका। उन्होने कहा की कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। मैं एक राज्य सरकार का कर्मचारी हूं, इसलिए जो कुछ भी आता है वह राज्य सरकार से आनी चाहिए। ईडी द्वारा समन जारी किए जाने के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की, मैं भी इस रिट याचिका में एक गवाह हूं। उन्होंने आगे कहा कि वह जांच में एजेंसी की सहायता के लिए ईडी के सामने पेश होने के लिए तैयार हैं। मगर अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार करूंगा।
मालूम हो की ईडी के समन पर राज्य के पुलिस महानिदेशक ने भी सम्बन्धित डी एस पी को यह निर्देश दिया था की निर्धारित समय पर ईडी के समझ उपस्थित हो। यहां यह बात विचारणीय है की क्या प्रदेश के डीजीपी का निर्देश एक डी एस पी के लिए मान्य नही है। डी एसपी सरकार की बात को प्राथमिकता दे रहे है तो क्या डीजीपी का आदेश उनके लिए क्या है। यह मामला डीएसपी और ईडी दोनो के लिए चैलेंज बन गया है।
ईडी जांच के क्रम मे बोल चुकी है की पुलिस जांच मे सहयोग नही कर रही, ईडी की जांच हो सकती है प्रभावित
प्रमोद मिश्रा जो दावा कर रहे हैं, अगर यह सच है तो फिलहाल यह अवैध पत्थर खनन मामले में ईडी की जांच को प्रभावित कर सकता है। बरहरवा टोल प्लाजा पहला और सबसे महत्वपूर्ण मामला है, जो मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का आधार है। पाकुड़ के एक व्यवसायी शंभू नंदन ने जून 2020 में एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि राज्य के मंत्री आलमगीर आलम और पंकज मिश्रा, जो झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विधायक प्रतिनिधि हैं, ने उन्हें फोन पर धमकी दी थी। क्योंकि उन्होंने निविदा में भाग लेने का फैसला किया था, लेकिन जब उसने मना किया और नीलामी में हिस्सा लेने आया तो उसके साथ मारपीट की गई। उन्होंने साहिबगंज जिले के बरहरवा थाने में मंत्री आलमगीर आलम और पंकज मिश्रा व अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी।
बरहरवा के डीएसपी के रूप में प्रमोद मिश्रा ने प्राथमिकी दर्ज होने के 24 घंटे के भीतर मामले की निगरानी पूरी की। उन्होंने उपलब्ध डिजिटल सबूतों की जांच किए बिना ही मंत्री और पंकज मिश्रा को क्लीन चिट दे दी। पंकज मिश्रा को ईडी ने गिरफ्तार कर चार्जशीट किया था, लेकिन एजेंसी ने पाया कि साहिबगंज पुलिस जानबूझकर जांच में बाधा डाल रही थी।इसलिए, इसने प्रमोद मिश्रा को यह बताने के लिए तलब किया कि उन्होंने जांच कैसे की, लेकिन वह ईडी के सामने पेश नहीं हुए। फिर भी राज्य के डीजीपी नीरज कुमार सिन्हा ने उन्हें बरहरवा टोल मामले में पूछताछ के लिए ईडी के सामने पेश होने का निर्देश भी दिया था।