khunti: जीवन में परिस्थितियां कितनी ही कठिन क्यों न हो, लेकिन मन में कुछ करने का जज्बा हो, इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास प्रबल हो, तो न दिव्यांगता बाधा बनती है और न ही गरीबी आड़े आती है। इसे सिद्ध कर दिखाया है खूंटी के नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आवासीय विद्यालय में प्रशिक्षण प्राप्त युवा दिव्यांग तीरंदाज झोंगो पाहन। आज वह जीता जागता दृढ़ इच्छाशक्ति का बड़ा चेहरा है।
बचपन में ही दोनो पैरों में पोलियो का शिकार होने के बावजूद झोंगो ने अपने हौसलों और इरादों के बल पर ऊंची उड़ान भरने की तैयारी कर रखी थी। झोंगो पाहन को 26 से 29 दिसंबर तक पंजाब के पटियाला में होनेवाली राष्ट्रीय पैरा तीरंदाजी चैम्पियनशिप में झारखण्ड तीरंदाजी टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। खूंटी प्रखंड की फुदी पंचायत के सेल्दा गांव निवासी झोंगो के पिता गुसू पहान अपने गाव में चरवाहा का काम करते हैं, तो मां सोवाग देवी गृहिणी है। गरीबी, तंगहाली और बेटे की दिव्यंगता के बावजूद पढाई न छूटे, इसलिए 2022 में झोंगो का नामांकन खूंटी के बिरहू स्थित नेताजी सुभाषचंद्र बोस विद्यालय में कराया। वहीं से तीरंदाजी की शुरुआत की और आज वह तीरंदाजी के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पटल पर दस्तक दे रहा है।
ओलंपिक में पदक जीतना सपना
झोंगो ने बताया कि प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत में वह कोच द्वारा धनुष थमाए जाने पर वह थोड़ा नर्वस था और उम्मीद नहीं थी कि बेहतर करेंगे, लेकिन सही मार्गदर्शन और कड़ी मेहनत का ही परिणाम है कि सामान्य तीरंदाजों को भी निशाना साधने में पीछे छोड़ रहा है। अब एकमात्र सपना ओलंपिक और पैरा ओलंपिक खेलों में भारत के लिए पदक जीतना खासकर गोल्ड मेडल हासिल करना है।
सुविधा मिले तो और बेहतर प्रदर्शन करेंगे खिलाड़ी
झोंगो के प्रशिक्षक दानीश बताते हैं कि झोंगो भले ही दिव्यांग है, लेकिन उसका शरीर तीरंदाजी के लिए पूरी तरह से अनुकूल है और वह तेजी से इस विधा में निपुण हो रहा है। वह लगातार बेहतर करने की कोशिश में रहता है। कोच अशीष बताते हैं कि सीमित संसाधनों में झोंगो बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, जबकि संसाधन और आधारभूत संरचना यदि बेहतर तरीके से यहां उपलब्ध कराया जाए, तो यहां के तीरंदाजों में भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन करने की प्रतिभा है।
खूंटी जिले के लिए गौरव की बात
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस विद्यालय में समाज के अन्तिम वर्ग के अनाथ, एकल अभिभावक के बच्चे, दिव्यांग, मानव तस्करी के मुक्त कराये गए और नक्सल प्रभावित परिवार के बच्चों को पढाई और खेल के माध्यम से उन्हें मुख्यधारा में लाने का एक प्रयास है। इसमें अब बच्चे को राष्ट्रीय स्तर पर खेलने का अवसर मिलना समस्त विद्यालय और जिला के लिए गौरव की बात है।