नई दिल्ली।
किसानों के आंदोलन के खिलाफ दायर याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है जिस में कटौती का सवाल नहीं है पर इसमें यह देखा जाए कि किसी और की जिंदगी प्रभावित ना हो रहा हो। हालांकि कोर्ट ने इस मामले में कोई आदेश जारी नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा है कि समाधान निकालने तक कानून लागू नहीं करने पर विचार हो सकता है? अब मामले की सुनवाई अगले सप्ताह वेकेशन बेंच कर सकती है।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि वे एक नागरिक के लिए पेश हुए हैं। कोई भी अधिकार अपने आप में पूर्ण नहीं है उसकी एक सीमा है। दिल्ली के नागरिकों के अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता। लोगों का रोजगार छिन रहा है। लोग पड़ोसी शहर भी नहीं जा पा रहे हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले का निपटारा आज नहीं हो रहा है। बस शांतिपूर्वक विरोध भी चलता रहे और लोगों के मौलिक अधिकार का हनन भी ना हो। साल्वे ने यह भी कहा कि अगर मेरी कार जला दी जाती है तो कोर्ट सरकार से भरपाई को कहेगा। नेताओं की पहचान हो ताकि उनसे ही वसूली हो सके। इस पर कोर्ट ने कहा कि नेताओं की पहचान होनी चाहिए हम समाधान के लिए कमेटी बनाना चाहते हैं जिसमें कृषि विशेषज्ञ और किसान यूनियन के लोग हो।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि कौन कौन से बॉर्डर रोक दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने प्रस्ताव दिए हैं लोग जिद पर अड़े। दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कहा कि इसके अलावा भी दिल्ली आने-जाने के कई रास्ते हैं। किसानों की मांग मान ली जाए तो हल निकल जाएगा। पंजाब की ओर से टीम पी चिंदंबरम ने कहा कि किसान अहंकारी सरकार से लड़ रहे हैं। उन्हें दिल्ली आने से रोका जा रहा है। जिस पर चीफ जस्टिस ने पूछा इतनी बड़ी संख्या में लोग दिल्ली आ गए तो उन्हें नियंत्रित कैसे किया जाएगा। भारतीय किसान यूनियन के वकील एपी सिंह ने कहा कि किसान देश की रीढ़ है। उनका ध्यान रखा जाए इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि शांतिपूर्वक विरोध पर रोक नहीं है।