झारखंड की जामा विधानसभा सीट पर सोरेन परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए, दिशा गुरु और हेमंत सोरेन के बाद, उनके परिवार की तीसरी पीढ़ी चुनावी ताल ठोकने के लिए तैयार है। जामा के पूर्व विधायक स्व दुर्गा सोरेन और वर्तमान में जामताड़ा से बीजेपी की प्रत्याशी सीता सोरेन की बेटी जयश्री सोरेन ने नाजीर रसीद कटवाकर और नॉमिनेशन पेपर खरीदकर सक्रिय राजनीति में दस्तक देने का ऐलान कर दिया है।
माँ और पिता की राजनीतिक विरासत
जयश्री सोरेन की माँ, सीता सोरेन, ने जामा विधानसभा सीट से 2009, 2014, और 2019 में चुनाव जीतकर तीन टर्म तक विधायक रह चुकी हैं। वहीं, उनके पिता स्व दुर्गा सोरेन ने 1995 और 2000 में दो टर्म और दादा शिबू सोरेन ने 1985 में विधायक रहकर इस सीट पर अपना प्रभाव छोड़ा है।
इस बार, जब लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सीता सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया, तब जयश्री भी सक्रिय रूप से बीजेपी में शामिल हो गईं। इस परिवार की राजनीति ने हमेशा से जामा सीट पर एक विशेष पहचान बनाई है।
निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय
जयश्री सोरेन अपने माता-पिता की परंपरागत सीट जामा से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए लगातार प्रयासरत थीं। लोकसभा चुनाव के बाद से वह विशेष रूप से इस विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर रही थीं। लेकिन जब पार्टी ने अपने पुराने उम्मीदवार सुरेश मुर्मू को फिर से उम्मीदवार बना दिया, तो जयश्री ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बना लिया और नॉमिनेशन पेपर खरीद लिया।
मंगलवार को नॉमिनेशन का आखिरी दिन है। ऐसे में जयश्री सोरेन ने नॉमिनेशन करने के लिए अपनी तैयारियों को अंतिम रूप दे दिया है। उन्होंने अपने नॉमिनेशन में अपना पता ‘जयश्री सोरेन, पिता स्व दुर्गा सोरेन, रेड क्रॉस के पास मोराबादी मैदान, थाना लालपुर, मोराबादी रांची’ लिखा है।
सोरेन परिवार का वर्चस्व
जामा विधानसभा क्षेत्र में सोरेन परिवार का एक लंबा राजनीतिक इतिहास रहा है।
- शिबू सोरेन 1985 में विधायक चुने गए।
- दुर्गा सोरेन 1995 और 2000 में विधायक चुने गए।
- सीता सोरेन 2009, 2014, और 2019 में विधायक चुनी गईं।
यह परिवार हमेशा से जामा की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और अब जयश्री सोरेन के चुनावी मैदान में उतरने से इस विरासत को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है।
जयश्री सोरेन का निर्दलीय चुनावी मैदान में आना इस बात का संकेत है कि सोरेन परिवार की राजनीतिक गहरी जड़ों और परंपरा को आगे बढ़ाने का प्रयास जारी है। अब देखना यह होगा कि क्या जयश्री अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा पाती हैं या नहीं।