Begusarai: मिथिलांचल के दक्षिणी प्रवेश द्वार पर माधुर्य वैष्णव भक्ति के परिचायक विश्वनाथ मंदिर बीहट में रविवार की देर रात प्रभु श्रीराम और माता जानकी के विवाह की रस्म पूरा करने के साथ ही अलौकिक एवं अद्वितीय 92वां श्रीजानकी विवाह महोत्सव की तीसरी कड़ी पूरी हो गई। इस बेमिसाल विवाह महोत्सव को देखने-सुनने के लिए बीहट स्थित विश्वनाथ मंदिर के प्रांगण में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। देर रात विवाह की प्रक्रिया संपन्न होने तक ठंड में भी लोग डटे रहे तथा पूरा इलाका मैथिली विवाह, भक्ति एवं लोकगीतों से गुंजायमान होता रहा। विवाह की रस्म पूरी कराए जाने से पहले पूरे विधि-विधान से दूल्हा बने अयोध्या से आए राम रुपी बालक को मौड़ी पहनाया गया।
इसके बाद बैंड-बाजे के साथ मंदिर के अवध द्वार से भगवान श्रीराम की बारात निकाली गई तथा नगर भ्रमण कराया गया। इस दौरान जगह-जगह पर श्रद्धालुओं ने पुष्पवृष्टि करने के साथ आरती उतारकर दूल्हे का स्वागत किया। नगर भ्रमण के बाद बारात के जानकी द्वार पर पहुंचते ही लोगों ने जोरदार स्वागत किया गया। जहां कि परीछन के बाद विवाह मंडप के बाहर दूल्हा बने भगवान श्रीराम की आरती उतारी गई तथा उसके बाद द्वार पूजा किया गया।
इस दौरान दूल्हे से सखियों की हंसी-ठिठौली देख लोग काफी आनंदित हो रहे थे। उसके बाद आदर के साथ ले जाकर उन्हें विवाह मंडप के आसन पर विराजमान कराया गया तथा माता जानकी को भी विवाह मंडप में लाया गया। यहां नाखून काटने से लेकर कन्यादान की सभी रस्में पूरे विधि विधान के साथ पूरी की गई तथा सिया ने रघुवर और रघुवर ने सिया को वरमाला पहनाई। इसके बाद विवाह की सभी रस्में वैदिक मंत्रोच्चार एवं मिथिला के पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ संपन्न कराया गया।
जहां पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण ने जनक के रूप में कन्या दान का विधान पूरा किया। पीठासीन आचार्य राजकिशोर शरण ने बताया कि जानकी महोत्सव वैष्णव माधुर्य भक्ति की पराकाष्ठा एवं महान श्रृंगार का उच्चतम ही नहीं, बल्कि अनिवर्चनीय रस है। गुरू कृपा से परब्रह्म के अलौकिक विवाह महोत्सव में शामिल होने का सौभाग्य मिलता है। मिथिला ने परब्रह्म श्रीराम को दामाद रूप में अपनाकर सबके लिए पाहुन बना दिया, परम ब्रह्म की आराधना से श्रीराम से शाश्वत संबंध जुड़ता है।