Ranchi: समलैंगिक विवाह के अधिकार को विधि मान्यता देने का जो निर्णय लिया जाना है उसका विरोध नेशनल फोरम ऑफ वीकर सेक्शन ऑफ़ द सोसाइटी करता है। यह सभ्य समाज के लिए उचित नही। नेशनल संगठन के नेशनल प्रेसिडेंट डॉ सहदेव राम ने कहा कि भारत की सभ्यता और संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी मानी जाती है, जहां विभिन्न धर्मो, जातियों, उप जातियों के लोग निवास करते है, जहाँ पर जैविक पुरुष एवं जैविक महिला के मध्य, विवाह को मान्यता देता आ रहा है । इस प्रथा से 2 विषम लैंगिकों का मिलन ही नहीं बल्कि मानव जाती की उन्नति भी है।
भारत के सभी धर्मो, जातियों एवं सम्प्रदायो के लोगों ने विवाह को 2 अलग लैंगिको के पवित्र मिलन के रूप मे सिर्फ मान्यता ही नहीं दिया है बल्कि इससे समाज के विकसित होने का प्रमाण भी दिया है | भारत मे आदिवासियों एवं मूलवासियों के उपजातियों के विवाह की रस्मे अलग -अलग प्रकार से होती है जो समाज को गवाह बनाकर 2 लिंगो के बीच विवाह की रस्म पूरी की जाती है जिसमें दोनों परिवार और समाज की सहमति होती है । जबकि पाश्चातय देशो में लोकप्रिय, 2 पक्षो के मध्य, अनुबंध या सहमति को मान्यता नहीं दिया है ।
इस सम्बन्ध मे भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नालसा (2014), नौतेज़ जोहर (2018) के मामलो मे समलैंगिक एवं विपरीत लिंगी की अधिकारो को पूर्व से ही सारांक्षित किया है, जिससे यह समुदाय पूरी तरह से उत्पीड़ित या असमान नहीं है जैसा की उनके द्वारा बताया जा रहा है । इस स्थिति मे यह मौलिक अधिकार के अंतर्गत नहीं हो कर भले ही वैधानिक अधिकार हो सकता है, जो केवल भारत की सांसद द्वारा क़ानून बना कर ही सारांक्षित किया जा सकता है ।
उपरोक्त परिपेक्ष के हम इस महत्वपूर्ण विषय पर, सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दिखाई जा रही आतुरता पर अपनी गहन पीड़ा व्यक्त करते है। न्याय की स्थापना एवं न्याय तक पहुंचने के मार्ग को सुनिश्चित करने तथा न्याय पालिका की विश्वस्नीयता को कायम रखने के लिए, लंबित मामलो को पूरा करने एवं महत्वपूर्ण सुधार करने के स्थान पर, एक काल्पनिक मुद्दे पर बुनियादी ढाचे को नष्ट/उपयोग किया जा रहा है, सर्वथा अनुचित है ।
हालांकि इस सम्बन्ध में देश के सर्वोच्च न्यायालय के सालिसीटर जैनरल तुषार मेहता ने सामान लिंग के बीच विवाह का विरोध किया है और कहा है की “देश के सभी नागरिको के पास प्यार करने और इसे इज़हार करने का अधिकार पहले ही है, कोई भी लोगों के द्वारा इस अधिकार का हनन नहीं कर सकता, साथ ही साथ बार कौंसिल ऑफ इंडिया ने भी समलैंगिक विवाह का पुरज़ोर विरोध किया है जिसका हम सभी समर्थन करते है | अतः नेशनल फोरम यह मांग करती है की समलैंगिक विवाह के प्रस्तावित कानून को मान्यता नहीं दी जाए जिससे भारत की संस्कृति और सभ्यता पर आंच आए।