नई दिल्ली
विरोध प्रदर्शन के नाम पर सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चितकाल तक के लिए कब्जा जमाए रखने को सुप्रीम कोर्ट ने गलत करार दिया है। शाहीन बाग में चले अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन के मामले में सुनवाई के दौरान जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि संविधान में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका है। विधायिका ने नागरिकता संशोधन कानून को पारित किया है और इस कानून के समर्थक और विरोधी दोनों हैं। इसकी वैधता का सवाल कोर्ट में लंबित है। कोर्ट ने कहा कि असहमति और लोकतंत्र साथ साथ चलते हैं लेकिन विरोध प्रदर्शनों का स्थान नियत होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि हम तकनीकी विकास के जमाने में जी रहे हैं। सोशल मीडिया पर समानांतर बहस होती है लेकिन उसका कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकलता है और उससे उच्च स्तरीय ध्रुवीकरण शाहीन बाग के रूप में देखने को मिलता है।
कोर्ट ने ऐसे मामलों में प्रशासन को बिना कोर्ट के आदेश के फैसला लेने की बात कही। उल्लेखनीय है कि इस मामले में कोर्ट ने सुनवाई के बाद 21 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि अब शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को हटाया जा चुका है। इसलिए इस याचिका पर अब सुनवाई की कोई जरूरत नहीं है। वही याचिकाकर्ता अमित सैनी ने याचिका वापस लेने से मना कर दिया था । उनका कहना था कि मसला अभी खत्म नहीं हुआ है। वही दूसरे याचिकाकर्ता ने कहा था कि यह सुनिश्चित किया जाए इस तरह से सड़क ना रोकी जाए। सड़क ब्लॉक करने के न्यूज़ सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद प्रदर्शन 100 दिनों तक चलते रहे। इस मामले में सुनवाई होनी चाहिए और दिशा निर्देश पास करना चाहिए।