रांची। झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस ने शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु को पत्र लिखकर झारखंड उच्च न्यायालय की भाषा हिंदी बनाने की जरूरत बताई है। उन्होंने कहा कि झारखंड की राजभाषा हिंदी है। राज्य के सर्वाधिक लोग हिंदी बोलते और समझते है। फिर भी राज्य के उच्च न्यायालय की भाषा अंग्रेजी है। राज्यपाल ने कहा कि संविधान में निहित प्रावधानो का उपयोग करते हुए हिंदी को झारखंड उच्च न्यायालय की भाषा नहीं बनाया जा सका है, जबकि यूपी, एमपी, राजस्थान और बिहार के उच्च न्यायालय की कार्यवाहियो में हिंदी भाषा शामिल है।
उन्होंने कहा कि झारखंड गठन के बाद यहां हिंदी राजभाषा जरूर बनी पर उच्च न्यायालय में न्यायालय की कार्यवाही की भाषा हिंदी नहीं बनाई जा सकी है। आगे कहा कि सुलभ न्याय और स्पष्ट रूप से सबको समझ आने चाहिए। इसके लिए न्यायिक प्रक्रिया आम आदमी को समझ में आनी चाहिए। अंगेजी भाषा से कानूनी प्रक्रिया आम आदमी की पहुंच से दूर हो जाती है।
उन्होंने कहा है कि अनुच्छेद 348 के खंड (दो) में प्रावधान है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा का या उस राज्य की शासकीय भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा। अब जबकि हिंदी झारखंड की राजकीय भाषा भी है, अत: इसे उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा घोषित करना संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होगा। राज्यहित एवं न्यायहित में संविधान के अनुच्छेद 348(2) में प्रदत्त प्रावधानों का प्रयोग करते हुए हिन्दी को झारखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में प्राधिकृत किया जा सकता है।
पत्र में कहा गया है कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश प्राप्त है। इसके तहत संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए एवं जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे।