रांची। झारखण्ड राज्य बाल संरक्षण संस्था एवं चाइल्ड इन नीड इंस्टीट्यूट (सिनी) के तत्वाधान में “बच्चों के परिवार आधारित देखभाल को प्रोत्साहित करने एवं बाल विवाह की रोकथाम” विषय पर एक राज्यस्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। उक्त कार्यशाला के दौरान राज्य में मिशन वात्सल्य के अंतर्गत बच्चों के परिवार आधारित देखभाल को प्रोत्साहित कर जमीनी स्तर पर ऐसी व्यवस्थाओं को स्थापित करने पर चर्चा हुई, जिससे बच्चों के परिवार से अनावश्यक अलगाव को रोका जा सके। जो बच्चों किसी कारण से बाल देखरेख संस्थानों में रह रहे हैं, उन्हें भी यथाशीघ्र अपने परिवार अथवा वैकल्पिक परिवार में पुनर्स्थापित किया जा सके। किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम) 2015 में “बाल देखरेख संस्थान को अंतिम विकल्प” के रूप में स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
कार्यशाला के दौरान आयोजित पैनल परिचर्चा में गैर-संस्थागत परिवार आधारित देखभाल के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई तथा इसे सुनिश्चित करने में विभिन्न हितधारकों के परस्पर समन्वय एवं समेकित प्रयास की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। कार्यशाला के दौरान राज्य सरकार द्वारा मिशन वात्सल्य के अंतर्गत परिवार आधारित गैर संस्थागत देखभाल के क्रियान्वयन में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए एक राज्यव्यापी रणनीति के निर्माण की पहल की गई, जिसके लिए राज्य स्तर पर के कार्यकारी समूह बनाने का निर्णय लिया गया |
कार्यशाला के दूसरे चरण में राज्य में बच्चों के अधिकारों के हनन से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण मुद्दे “बाल विवाह” पर चर्चा की गई । मनरेगा आयुक्त राजेश्वरी बी द्वारा राज्य में बाल विवाह को एक गंभीर समस्या बताते हुए विभागीय स्तर पर विभिन्न हितधारकों के समन्वय से इसकी रोकथाम हेतु कार्ययोजना को मूर्त रूप देने की बात कही गई। बाल विवाह की रोकथाम में शिक्षा के महत्त्व को स्वीकार करते हुए बच्चों के शिक्षा से जुडाव को सुनिश्चित कर उनके विद्यालय परित्याग की संभावनाओं को कम करने पर भी विचार किया गया। विभिन्न शोध के दौरान यह पाया गया है कि शिक्षा जारी रहने से बच्चों विशेषकर लड़कियों के बाल विवाह की सम्भावना तो क्षीण हो ही जाती है। साथ-ही-साथ, कई प्रकार के शोषण, हिंसा और भेदभाव से भी उनके बचाव में भी कारगर होता है ।
हर स्तर पर बाल संरक्षण की दिशा में संवेदनशीलता से कार्य जारी– मनरेगा आयुक्त राजेश्वरी बी
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राजेश्वरी बी नेअपने सम्बोधन में बताया गया कि बच्चों का संरक्षण करना हम सभी का दायित्व है। आज के संरक्षण से ही कल के बच्चों का भविष्य निर्भर करता है, आगे उन्होंने कहा कि यह झारखंड राज्य में बाल विवाह एक चिंता का विषय है क्योंकि यह कई अन्य समस्याओं को भी जन्म देता है। यह किशोरियों की शिक्षा को कम करता है, उनके स्वास्थ्य से समझौता करता है, उन्हें हिंसा के लिए उजागर करता है और उन्हें गरीबी में फँसाता है, उनकी संभावनाओं और क्षमता को कम करता है। बाल विवाह भी हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण का अनुभव करती हैं। राज्य के पास “बाल विवाह को समाप्त करने के लिए राज्य की कार्य योजना” है जो कारणात्मक कारकों को दूर करने और कानून प्रवर्तन सुनिश्चित करने के लिए बहु-आयामी रणनीतियों और सहयोगात्मक दृष्टिकोण की वकालत करती है।
उन्होंने कहा कि जिले के जितने भी कठिन परिस्थिति में रहने वाले बच्चे हैं उनका मैपिंग करने में जिला प्रशासन अपने स्तर से सहयोग प्रदान कर रहा है, ताकि हम एक नए जिले की ओर बढ़ सके और बाल सुरक्षा का मजबूत कवच तैयार कर सके।
उक्त कार्यशाला में प्रीति श्रीवास्तव, बाल संरक्षण विशेषज्ञ, यूनिसेफ़, तन्वी झा, राज्य कार्यक्रम प्रबंधक, सिनी, झारखण्ड के साथ-साथ झारखण्ड राज्य बाल संरक्षण संस्था के पदाधिकारीगण,विभिन्न जिलों के जिला बाल संरक्षण पदाधिकारी, बाल कल्याण समिति के सदस्य गण के साथ-साथ केन्द्रीय मनःचिकित्सा संस्थान, सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स, ज़ेवियर समाज सेवा संस्थान एवं अन्य स्वयं -सेवी संस्थानों के प्रतिनिधिगण उपस्थित थे |