रांची। झारखंड में इन दिनों सियासी गतिविधियां तेज हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की कुर्सी पिछले 10 दिनों से डगमगा रही है लेकिन रणनीतिक तौर पर हेमन्त न सिर्फ विपक्ष के हर वार को कुंद करते जा रहे हैं बल्कि, अपनी तरफ से भी ऐसी-ऐसी चाल चल रहे हैं, जो विपक्ष पर भारी पड़ता जा रहा है। झारखंड विधानसभा का सत्र बुलाना इसी की एक कड़ी है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खनन लीज मामले में चुनाव आयोग की चिट्ठी मिलने के 10 दिन बाद भी राज्यपाल का कोई आदेश नहीं आया है लेकिन राज्य की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है। राज्यपाल अभी तक दिल्ली से रांची नहीं लौटे हैं। इसको लेकर भी राजनीतिक हलकों में चर्चा जोरों पर है।
सोमवार को विधानसभा का सत्र होना है और राज्य की हेमन्त सरकार सदन से विश्वासमत का बूस्टर डोज लेगी। संख्या बल के हिसाब से हेमन्त सरकार को विश्वासमत हासिल करने में कोई खतरा नहीं दिख रहा है लेकिन सदन के भीतर क्या होता है, यह देखने वाली बात होगी। इतना तो तय है कि हेमन्त सोरेन ने सदन से विश्वासमत लेने की योजना तैयार कर विपक्षी नेताओं की नींद उड़ा दी है।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने संकेत दिया कि रायपुर में मेफेयर रिजॉर्ट में जमे यूपीए विधायक और कैबिनेट मंत्री शाम तक रांची वापस लौटने वाले हैं। रांची वापसी के बाद उन्हें घरों को जाने की इजाजत नहीं होगी। रांची में भी सभी विधायकों को बाड़ेबंदी में ही रखा जाएगा। इसके लिए स्टेट गेस्ट हाउस और स्टेट सर्किट हाउस में बुकिंग की गई है। सोमवार को सभी विधायक विधानसभा के विशेष सत्र में शामिल होंगे।
कांग्रेस विधायक दल के नेता आलमगीर आलम और झामुमो के मुख्य सचेतक नलिन सोरेन ने कहा कि सभी विधायक सत्र में शामिल होंगे। साथ ही कोलकाता कैश कांड में फंसे कांग्रेस के तीनों विधायकों को पार्टी की ओर से सूचना नहीं दी गई है। सभी की नजरें राजभवन पर टिकी हैं, ताकि गवर्नर का फैसला आते ही उसके अनुरूप रणनीति बनाई जा सके। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब सरकार के पास पूर्ण बहुमत है, तो आखिर क्यों सदन में विश्वासमत हासिल करने की योजना है।
अमूमन देखा गया है कि विपक्ष की तरफ से सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव लाया जाता है। झारखंड में भी पूर्व में सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव लाया गया है लेकिन यह झारखंड के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि पूर्ण बहुमत रहते हुए भी सरकार ही सदन में विश्वास प्रस्ताव ला रही है। इस मामले पर जानकारों का कहना है कि इस सत्र का राजनीतिक माइलेज लेने की कोशिश की जा सकती है।
संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत सरकार को एक बार विश्वास मत हासिल करने के बाद छह माह तक दोबारा विश्वास मत हासिल करने की जरूरत नहीं होगी। अगर गवर्नर के आदेश के बाद सीएम की विधानसभा से सदस्यता जाती भी है तो सीएम हेमंत स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति को सीएम बनाने को दावा पेश कर सकते हैं। राजनीतिक तौर पर यह भी कह सकते हैं कि यूपीए के पास बहुमत है। केवल नेता बदले गए।
सदन में मुख्यमंत्री कर सकते हैं कई घोषणाएं
विधानसभा के सत्र में मुख्यमंत्री कई ऐसे मुद्दे पर घोषणा कर सकते हैं, जिसका उन्हें सीधा राजनीतिक लाभ मिलेगा। साथ ही विपक्षी गठबंधन को भी झटका लगेगा। इन घोषणाओं में महत्वपूर्ण है आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाना, 1932 या लास्ट सर्वे ऑफ़ सेटेलमेंट के आधार पर स्थानीय नीति की घोषणा करना और जातीय जनगणना कराना। यदि सदन में मुख्यमंत्री इसकी घोषणा करते हैं तो यह खासकर उनकी पार्टी के लिए बहुत बड़ा मास्टर स्ट्रोक होगा। हालांकि, यह भी कहा जा रहा है कि स्थानीय नीति पर कांग्रेस के लोग 1932 के आधार पर सहमत नहीं हों। यह भी सच है कि हर तरह की आशंका को देखते हुए मुख्यमंत्री सोमवार को बड़ा ट्रंप कार्ड खेलेंगे।
भाजपा भी रणनीति बनाने में जुटी
प्रदेश भाजपा की तरफ से भी विधानसभा सत्र को लेकर तैयारी शुरू कर दी गयी है। रविवार को भाजपा विधायक दल की बैठक है। बैठक में विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के साथ-साथ प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, संगठन महामंत्री करमवीर सिंह भी शामिल होंगे।