रांची। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय कोयला और खान मंत्री प्रह्लाद जोशी को पत्र लिखकर राज्य में कोल माइनिंग प्रोजेक्ट के लिए ली गई जमीन के मुआवजे और कोयला खनन के एवज में राजस्व भुगतान की मांग की है। मुख्यमंत्री ने 1.36 लाख करोड़ रुपये का बकाया चुकता करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि इस बकाया का जल्द भुगतान नहीं हुआ तो राज्य से कोयला बाहर नहीं जाने देंगे। सभी साइट पर ताला लगा देंगे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने केंद्रीय मंत्री को लिखे चार पन्ने के पत्र को शनिवार को अपने ट्वीटर हैंडल पर भी शेयर किया है।
विधानसभा में भी प्रमुखता से उठाया मुद्दा
उल्लेखनीय है कि गत शुक्रवार को भी उन्होंने झारखंड विधानसभा में अपने भाषण में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने कहा था कि यह झारखंड का हक है और इसे वे लेकर रहेंगे। अगर इस बकाया राशि का भुगतान नहीं हुआ तो राज्य से कोयला और खनिज बाहर नहीं जाने देंगे। कोयला और खनिज की बैरिकेडिंग कर ताला लगा दिया जायेगा।
केंद्रीय कोयला और खान मंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में कोल इंडिया लिमिटेड की अनुषंगी कंपनियों और केंद्रीय उपक्रमों के माइनिंग से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए अधिग्रहित जमीन के एवज में एक लाख हजार एक सौ बयालीस करोड़ रुपये की दावेदारी बनती है। इसके अलावा एमएमडीआर (माइन्स एंड मिनरल डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट, 1957 के नियमों के अनुसार 32 हजार करोड़ रुपये और वाश्ड कोल की रॉयल्टी के एवज में दो हजार नौ सौ करोड़ रुपये का बकाया है।
अब तक बकाया भुगतान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है
मुख्यमंत्री ने पत्र में लिखा है कि वर्तमान में झारखंड में सीआईएल की सहायक कोयला कंपनियां प्रसंस्कृत कोयले (वाश्ड कोल) को भेजने के बजाय रन-ऑफ-माइन कोयले के आधार पर रॉयल्टी का भुगतान कर रही हैं। इस संबंध में अदालतों का फैसला स्पष्ट है। इसलिए अदालत के फैसलों और नियमों के मुताबिक राज्य सरकार को रेवेन्यू का भुगतान किया जाना चाहिए। झारखंड का सामाजिक-आर्थिक विकास मुख्य रूप से इन खनिजों से होने वाले राजस्व पर निर्भर करता है। इस संबंध में कोयला मंत्रालय और नीति आयोग को बार-बार बताया गया है। लेकिन अब तक बकाया भुगतान की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।
बताया जाता है कि लगभग दो माह पहले राज्य के वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को पत्र लिखकर केंद्रीय उपक्रमों पर राज्य की बकाया राशि के भुगतान का आग्रह किया था। इसमें झारखंड सरकार का स्टैंड रखते हुए उन्होंने कहा था कि कोयले की रॉयल्टी और मूल्य आधारित दर 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत करने का निर्णय 2012 में ही लिया जा चुका है लेकिन इस पर अब तक अमल नहीं होने से झारखंड को हर साल करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ रहा है।